सत्यम सिंह बघेल (आलेख)-
जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारत और चीन की सीमा करीब 3488 किलोमीटर लंबी है। इसका 220 किलोमीटर लंबा हिस्सा सिक्किम में आता है। चूंकि सिक्किम सेक्टर में बना हुआ गतिरोध अभी तक जारी है, इस विवाद को शुरू हुए एक महीने से भी अधिक समय बीत गया है, लेकिन तनाव जस के तस बना हुआ है। भारत, चीन और भूटान की सीमा पर डोकलाम में कायम मौजूदा तनाव पर चीन ने एकबार फिर भारत को चेतावनी दी है। डोकलाम पर जारी तनातनी को लेकर अब तक चीन अपने सरकारी मीडिया के जरिए युद्ध की धमकी देता आ रहा था, लेकिन अब सीधे चीन की सेना भारत को युद्ध की चेतावनी दे रही है। चीन की सेना के प्रवक्ता ने कहा कि भारत पीछे नहीं हटा तो चीन डोकलाम में अपने सैनिकों की संख्या बढ़ा देगा। चीनी सेना के प्रवक्ता वू चिऐन ने भारत को धमकी भरे लहजे में कहा, चीनी सेना का 90 साल का इतिहास हमारी क्षमता को साबित करता है। पहाड़ को हिलाना तो मुमकिन है, पर चीन की सेना को नहीं, उन्होंने आगे कहा कि भारत किसी भ्रम में न रहे, हम हर कीमत पर अपनी संप्रभुता की रक्षा करेंगे। जब से यह विवाद शुरू हुआ है, तब से ही चीनी मीडिया लगातर इस मुद्दे पर भारत के खिलाफ लिख रहा है। ग्लोबल टाइम्स तो आएदिन अपने लेखों में भारत को चेतावनियां देता रहता है। इस पूरे मसले पर भारत का रुख न केवल काफी दृढ़ रहा है, बल्कि भारत की प्रतिक्रिया काफी सधी हुई भी दिख रही है।
डोकलाम में पूरा विवाद सड़क निर्माण को लेकर शुरू हुआ था। 16 जून को डोकलाम में चीन का सड़क बनाने का एकतरफा फैसला उसकी गलत विदेश नीति का हिस्सा है। भूटान ने चीन के इस कदम का सही कूटनीतिक रास्ते के जरिए विरोध जताया था। चीन को इस बात का अहसास था कि भूटान ऐसा ही करेगा, लेकिन उसे इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि भारत अपने पड़ोसी देश भूटान की मदद के लिए इतनी ताकत से आगे आएगा। भारतीय सेना ने भूटान सरकार से बात करने के बाद यथास्थिति के लिए कदम उठाया, यही बात संभवत: चीन के परे रही।
1984 से सीमा के इस विवाद पर चीन-भूटान दोनों देशों के बीच बातचीत चलती रही है। अब तक 24 दौर की बातचीत हो चुकी है। चीन के सैनिक अब तक इस इलाके में गश्त के लिए आते रहे हैं, लेकिन वापस चले जाते थे। 16 जून को चीन की सेना की कंस्ट्रक्शन टीम भारी संख्या में मशीनों और वाहनों के साथ आई और भूटान के इलाके में घुस गई। इस तरह की मूवमेंट पहले कभी नहीं देखी गई थी। इस मूवमेंट की तस्वीरें भी सामने आईं हैं। वहां चीनी सेना के लोगों को सड़क बनाने की कोशिश करते देख जोमपेरी चौकी पर मौजूद भूटान के सैनिकों ने उन्हें वापस जाने के लिए कहा। चीन के सैनिकों से यह भी कहा गया कि उनका एकतरफा कदम 1988 और 1998 की संधि का उल्लंघन है। भूटान के सैनिकों के मुकाबले चीन के सैनिक भारी संख्या में थे और उन्होंने भूटानी सैनिकों को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। भारत और भूटान की सेनाओं के बीच अरसे से सहयोग होता रहा है, भूटान में भारतीय सैनिकों की मौजूदगी भी रही है। चीन के सैनिक जिस इलाके में सड़क बनाना चाह रहे थे, वह भूटान के साथ भारत के लिए ढेरों सुरक्षा चिंताएं खड़ी करता है। उस इलाके से भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर की दूरी काफी कम है, जो नॉर्थ ईस्ट को भारत के शेष इलाकों से जोड़ता है। भारतीय सैनिक भूटान के सैनिकों के सपॉर्ट में डोका ला चौकी से नीचे उतर कर आए, लेकिन तब तक चीन के सैनिक वापस जा चुके थे। सोशल मीडिया में ऐसी क्लिपिंग भी आई कि भारत और चीन सैनिकों के बीच तब हाथापाई हो गई थी, लेकिन इन क्लिपिंग को पुराना पाया गया है। चीन के सैनिकों ने भारतीय बंकर जरूर नष्ट कर दिए थे, लेकिन भारत ने इसे तूल नहीं दिया क्योंकि वे पहले भी बंकर नष्ट कर चुके हैं। 20 तारीख को नाथू ला में भारत और चीन के बीच बॉर्डर पोस्ट मीटिंग में पूरा मुद्दा उठा था। चीन इस मामले में आरोप लगा रहा था कि भारतीय सैनिकों ने सिक्किम सेक्टर में सीमा पार की है, लेकिन भारत का यह रुख रहा है कि भारत और चीन के बीच सिक्किम की स्थिति को लेकर भले ही मामला सुलझ चुका हो, लेकिन सिक्किम से लगी सीमा का विवाद नहीं सुलझा है, इसलिए यह कहना गलत है कि भारतीय सैनिकों ने सीमा पार की है। वैसे भी भारत के सैनिकों को भूटान जाने के लिए चीन की सीमा पार करने की कहीं से भी जरूरत नहीं है।
सड़क निर्माण को लेकर भारत-चीन का कोई सीधा विवाद नहीं हैं, मसलन यह भूटान-चीन के बीच का है. डोकलाम को भूटान अपना हिस्सा मानता है। ऐसे में हो सकता है कि चीन को लगा हो कि भारत, भूटान के बचाव में सामने नहीं आएगा। लेकिन भारत डोकलाम पर भूटान के दावे का समर्थन करता है और उसे पता है कि डोकलाम में होने वाले हर विवाद का सीधा असर भारत-चीन बाडर पर भी पड़ेगा, ऐसे में भारत ने चीन के कदम का पुरजोर विरोध किया।
वजह यह भी है कि साल 2010 से चीन अपनी क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा के प्रति बेहद आक्रामक हो गया है। चीन कोरियाई प्रायद्वीप में धीरे-धीरे तनाव पैदा कर रहा है। जापान और दक्षिण चीन सागर के तटीय देशों के साथ उसका विवाद है। अब चीन, दक्षिण चीन सागर, जापान सागर और पीओके को अपना समझ कर इस्तेमाल करता है। एक तरह से ये चीन के हो चुके हैं। 2015 में जापान सागर और 2016 में दक्षिण चीन सागर में चीन के दावे से उसकी इस महत्वाकांक्षा का पता चल चुका है। चीन धीरे-धीरे पाकिस्तान से आधा पीओके ले चुका है। अरुणाचल प्रदेश पर अपने दावे को लेकर भी वह बेहद आक्रामक है, वह अपना दावा जताता है।
वैसे भी भारत और चीन के आपसी रिश्तों में कई द्विपक्षीय मुद्दों को लेकर तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई है। चीन ने जहां परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) समूह में भारत के प्रवेश को लेकर आपत्ति जताई वहीं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित किए जाने के प्रस्ताव पर अड़गा लगा दिया था। इसके अलावा भारत-चीन के बीच इन मुद्दों को लेकर विवाद है-
विवाद की सबसे बड़ी वजह है सीमा- भारत- चीन के बीच 4 हजार कि.मी की सीमा है जो कि निर्धारित नहीं है। इसे LAC कहते हैं। भारत और चीन के सैनिकों का जहां तक कब्जा है वही नियंत्रण रेखा है। जो कि 1914 में मैकमोहन ने तय की थी, लेकिन इसे भी चीन नहीं मानता और इसीलिए अक्सर वो घुसपैठ की कोशिश करता रहता है। विवाद की दूसरी अहम वजह है अरुणाचल प्रदेश- चीन अरुणाचल पर अपना दावा जताता है और इसीलिए अरुणाचल को विवादित बताने के लिए ही चीन वहां के निवासियों को स्टेपल वीजा देता है जिसका भारत विरोध करता है। तीसरी वजह है अक्साई चिन रोड- लद्दाख में इसे बनाकर चीन ने नया विवाद खड़ा किया। चौथी वजह है चीन का जम्मू-कश्मीर को भारत का अंग मानने में आनाकानी करना। पांचवीं वजह है पीओके को पाकिस्तान का भाग मानने में चीन को कोई आपत्ति न होना। छठी वजह है पीओके में चीनी गतिविधियों में इजाफा। हाल ही में चीन ने यहां 46 बिलियन डॉलर की लागत का प्रोजेक्ट शुरू किया है जिससे भारत खुश नहीं है। सातवीं वजह है तिब्बत। इसे भारतीय मान्यता से चीन खफा रहता है। आठवीं वजह है ब्रह्मपुत्र नदी- दरअसल यहां बांध बनाकर चीन सारा पानी अपनी ओर मोड़ रहा है जिसका भारत विरोध कर रहा है। नौवीं वजह है हिंद महासागर में तेज हुई चीनी गतिविधि। दसवीं वजह है साउथ चाइना सी में प्रभुत्व कायम करने की चीनी कोशिश। तिब्बत के आध्यात्मिक नेता दलाई लामा से मुलाकात को लेकर भी चीन कड़ा एतराज जताता है।
सीमा की विस्तारबाद नीति के साथ ही पिछले 35 साल के दौरान चीन बड़ी शिद्दत के साथ दो सैन्य शासन को परमाणु हथियारों से लैस करने की नीति पर चलता रहा है और ये देश हैं- पूर्वोत्तर एशिया में उत्तर कोरिया और दक्षिण एशिया में पाकिस्तान। कुछ रणनीतिक मतभेदों के बावजूद ये दोनों देश चीन के वफादार रहे हैं। दोनों चीन का उतना ही इस्तेमाल कर रहे हैं, जितना चीन उनका। चीन की तरह न तो उत्तर कोरिया और न ही पाकिस्तान को मौजूदा वैश्विक व्यवस्था पर भरोसा है। उसे अपनाने में दोनों की कोई दिलचस्पी नहीं है। चीन की आक्रामक नीति को आगे बढ़ाने के लिए नुकसान पहुंचाने वाले देश उसे उपलब्ध हैं। उनकी करतूतों से उन्हें खुद नुकसान पहुंचता है, लेकिन चीन को फायदा होता है। चीन का उनके बिना काम नहीं चल सकता और न उनका चीन के बिना। तीनों देश कहीं न कहीं प्रत्यक्ष और परोक्ष तरीके से सैन्य शासन द्वारा चलाए जा रहे हैं।
अमेरिका ने 20वीं सदी के दूसरे हिस्से में जो नीति अपनाई थी, चीन भी वही कर रहा है। चीन, जापान और द. कोरिया के खिलाफ अपनी ताकत दिखाने के लिए उत्तरी कोरिया का इस्तेमाल कर रहा है। इसी तरह भारत के खिलाफ ताकत दिखाने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है। अब यह सिर्फ वक्त की बात है कि चीन, उत्तर कोरिया और पाकिस्तान के साथ नाटो जैसा कोई एशियाई गठजोड़ बना ले। चीन के दो मकसद हैं। पहला- चीन पर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को सत्ता में टिकाए रखना। दूसरा- ऊंची विकास दर के जरिये अपने लक्ष्य को बरकरार रखना, ताकि अगले एक दशक में जब चीनी जनता की आय कम हो जाए या स्थिर हो जाए, तो वे बगावत पर न उतर आएं। इसके लिए इसे बड़ा बाजार और कच्चा माल चाहिए, यही वजह है कि वह जमीन और समुद्रों पर कब्जा करने में लगा है। चीन की इस महत्वाकांक्षा को देखते हुए उसके पड़ोसी देश अपनी सैन्य क्षमता बढ़ाने में लगे हैं, अमेरिका को साथ लेकर वे अपना सुरक्षा संपर्क बढ़ा रहे हैं, एशियाई सदी में अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा परिदृश्य का यही सार है। कहने का मतलब यह है कि हम एक दूसरे शीतयुद्ध की ओर बढ़ चले हैं, जो आगे तेज भी हो सकता है। इस स्थिति में भविष्य के टकराव भारत बनाम पाकिस्तान और दक्षिण कोरिया, जापान बनाम उत्तरी कोरिया के तौर पर देखने को मिलेंगे। भविष्य को छोड़िये, ये टकराव तो अब दिखने भी लगे हैं।
चीन को लेकर भारत की समस्या यह रही है कि इसने चीन को सदैव ही 'कोल्ड पीस' (निष्क्रियता ओढ़कर शांति बनाए रखने की नीति) अपनाया है, हालाँकि इस बार भारत ने मजबूती से अपना पक्ष रखा है, लेकिन भारत को अभी और अधिक आक्रामकता दिखाने की जरूरत है। जब तक भारत अपनी स्थिति को देखते हुए मुखर और आक्रामक नहीं होता स्थिति सुधरने वाली नहीं है। साथ ही उम्मीद की जा सकती है कि चीन, पाकिस्तान और उत्तर कोरिया के सैन्य इलिट के खिलाफ एक साथ खड़े होने के लिए दुनिया की अन्य शक्तियां ज्यादा वक्त नहीं लेंगी खुद को सत्ता में बरकरार रखने के लिए पहले भी वे एक साथ आ चुके हैं। अब समय लोकतांत्रिक देशों को एक साथ आने का है। इतिहास गवाह है ऐसे आक्रामक देश के प्रतिरोध के खिलाफ बाकी दुनिया को साथ आने में थोड़ा वक्त लगता है, लेकिन इस बार जल्दी करना होगा, क्योंकि चीन के मामले में इस तरह की पहल के लिए अब समय कम होता जा रहा है।
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.