सत्यम सिंह बघेल (आलेख)
मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के सभी स्कूल-कॉलेजों, सरकारी दफ्तर और संस्थानों में राष्ट्रगीत 'वंदे मातरम्' गाना अनिवार्य करने का ऑर्डर दिया। अगर इसके संस्कृत और बंगाली भाषा में होने के चलते कोई परेशानी आए तो सरकार तमिल में अनुवाद करा इसे सभी सरकारी वेबसाइट्स पर अपलोड करे। सुनवाई के दौरान जज ने कहा- ''देशभक्ति हर नागरिक के लिए जरूरी है। सभी को समझना चाहिए कि देश मातृभूमि होती है। इसकी आजादी के लिए कई लोगों ने कुर्बानी दी है।
जिसके बाद महाराष्ट्र के बीजेपी विधायक राज पुरोहित ने महाराष्ट्र में भी इस फैसले को लागू करने की मांग किये, उन्होंने कहा कि मैंने सीएम देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की है, हम चाहते हैं कि सीएम सभी के लिए वंदे मातरम् गाया जाना अनिवार्य करें। इसके बाद महाराष्ट्र सपा और एआईएमआईएम के नेता इसका विरोध किया। AIMIM के विधायक वारिस पठान ने कहा कि मैं वंदे मातरम् नहीं गाऊंगा, चाहे कोई मेरी कनपटी पर रिवाल्वर ही क्यों ना रख दे, किसी एक विचारधारा को हम पर थोपा नहीं जा सकता। मेरा धर्म (इस्लाम) और कानून इसे गाने की इजाजत नहीं देता है, हम विधानसभा में भी इसका विरोध करेंगे। दूसरी ओर, महाराष्ट्र के सपा नेता और विधायक अबु आजमी ने कहा, मैं राष्ट्रगीत नहीं गा सकता हूं, चाहे देश से बाहर क्यों ना निकाल दिया जाऊं, मैं इस्लाम का सच्चा फॉलोअर हूं, इसे गाना मेरे धर्म के खिलाफ है, कोई भी मुसलमान इसे कभी नहीं गाएगा।
यदि बाँग्ला भाषा को ध्यान में रखा जाय तो इसका शीर्षक 'बन्दे मातरम्' होना चाहिये 'वन्दे मातरम्' नहीं। चूँकि हिन्दी व संस्कृत भाषा में 'वन्दे' शब्द ही सही है, लेकिन यह गीत मूलरूप में बाँग्ला लिपि में लिखा गया था और चूँकि बाँग्ला लिपि में व अक्षर है ही नहीं अत: बन्दे मातरम् शीर्षक से ही बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने इसे लिखा था। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शीर्षक 'बन्दे मातरम्' होना चाहिये था। परन्तु संस्कृत में 'बन्दे मातरम्'का कोई शब्दार्थ नहीं है तथा 'वन्दे मातरम्' उच्चारण करने से 'माता की वन्दना करता हूँ' ऐसा अर्थ निकलता है, अतः देवनागरी लिपि में इसे वन्दे मातरम् ही लिखना व पढ़ना उचित होगा।
सन् 2003 में, बीबीसी वर्ल्ड सर्विस द्वारा आयोजित एक अन्तरराष्ट्रीय सर्वेक्षण में, जिसमें उस समय तक के सबसे मशहूर दस गीतों का चयन करने के लिये दुनिया भर से लगभग 7000 गीतों को चुना गया था और बी.बी.सी. के अनुसार 155 देशों/द्वीप के लोगों ने इसमें मतदान किया था उसमें वन्दे मातरम् शीर्ष के 10 गीतों में दूसरे स्थान पर था।
1870 के दौरान अँग्रेज हुक्मरानों ने 'गॉड सेव द क्वीन' गीत गाया जाना अनिवार्य कर दिया था। अंग्रेज़ों के इस आदेश से बंकिमचंद्र चटर्जी को, जो तब एक सरकारी अधिकारी थे, बहुत ठेस पहुँची और उन्होंने संभवत:1876 में इसके विकल्प के तौर पर संस्कृत और बांग्ला के मिश्रण से एक नए गीत की रचना की और उसका शीर्षक दिया "वंदे मातरम्"। शुरुआत में इसके केवल दो पद रचे गए थे, जो केवल संस्कृत में थे। गीत के पहले दो छंदों में मातृभूमि की सुंदरता का गीतात्मक वर्णन किया गया था, लेकिन1880 के दशक के मध्य में गीत को नया आयाम मिलना शुरू हो गया। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि बंकिम चंद्र ने 1881 में मातृभूमि के प्रेम से ओतप्रोत इस गीत को अपने उपन्यास 'आनंदमठ' में शामिल कर लिया। उसके बाद कहानी की माँग को देखते हुए उन्होंने इस गीत को और लंबा किया। बाद में जोड़े गए हिस्से में ही 'दशप्रहरणधारिणी', कमला और वाणी के उद्धरण दिए गए हैं। लेखक होने के नाते बंकिमचंद्र को ऐसा करने का पूरा अधिकार था और इसको लेकर तुरंत कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं हुई, यानि तब किसी ने ऐसा नहीं कहा कि यह मूर्ति की वंदना करने वाला गीत है। काफ़ी समय बाद जब मुस्लिम लीग की स्थापना हुई उसके बाद यह राष्ट्रगीत से एक ऐसा गीत बन गया, जिसमें सांप्रदायिक निहितार्थ थे। 1920 और ख़ासकर 1930 के दशक में इस गीत का विरोध शुरू हुआ।
अभी भी कुछ मुस्लिम नेता 'वन्दे मातरम्' का विरोध करते हैं। जबकि इस गीत के पहले दो बन्द, जो गाये जाते हैं उनमें कोई भी मुस्लिम विरोधी बात नहीं है और न ही किसी देवी या दुर्गा की आराधना है। पर इन लोगों का कहना है कि इस्लाम किसी व्यक्ति या वस्तु की पूजा करने को मना करता है और इस गीत में दुर्गा की वन्दना की गयी है, यह ऐसे उपन्यास से लिया गया है जो कि मुस्लिम विरोधी है, दो बन्द के बाद का गीत, जिसे कोई महत्व नहीं दिया गया, जो कि प्रासंगिक भी नहीं है में दुर्गा की अराधना है। राष्ट्रगीत के दो पदों में एक शब्द भी ऐसा नहीं है, जो इस्लाम के विरुद्ध हो। संस्कृत का'वन्दे' शब्द वंद धातु से बना है, जिसका मूल अर्थ है, प्रणाम, नमस्कार,सम्मान, प्रशंसा और कुछ शब्दकोशों में पूजा-अर्चना भी लिखा हुआ है लेकिन लाखों वर्गमील में फैली भारत-भूमि की कोई कैसे पूजा कर सकता है? क्योंकि वह कोई व्यक्ति, मूर्ति, पेड़-पौधा, चित्र या मूर्ती नहीं है, उसे किसी मंदिर या देवालय में स्थापित नहीं किया जा सकता, कोई उसका अभिषेक कैसे करेगा, उसकी आरती कैसे और किस जगह करेगा, परिक्रमा कैसे लगाएगा? यहाँ मातृभूमि की वंदना का मतलब यह है कि अपने राष्ट्र के प्रति आस्था और सम्मान रखना। मातृभूमि की मूर्तिपूजा जैसी पूजा तो बिलकुल असंभव है लेकिन आस्था के रूप में यह मान लिया जाये कि मातृभूमि पूज्य है तो इससे तौहीद (एकेश्वरवाद) का विरोध कैसे हो सकता है ? क्या मातृभूमि अल्लाह की रकीब (प्रतिद्वंद्वी) बन सकती है ? मातृभूमि की जो पूजा करेगा, क्या वह यह मानेगा कि उसके दो अल्लाह हैं, दो ईश्वर हैं, दो गॉड हैं, दो जिहोवा हैं, दो अहोरमज्द हैं ? बिलकुल नहीं। दो ईश्वर तो हो ही नहीं सकते। यदि मातृभूमि पूज्य है तो ईश्वर परमपूज्य है। दोनों में न तो कोई तुलना है न बराबरी है। रही बात वन्दे मातरम् के उर्दू मतलब का, तो 'वन्दे' मतलब है, सलाम या तस्लीमात। कहीं भी 'वन्दे' शब्द को इबादत या पूजा नहीं कहा गया है। क्या किसी को भी सलाम करने कि इस्लाम में मनाही है? इसी तरह वन्दे मातरम् के अंग्रेजी में 'वन्दे' को 'सेल्यूट' कहा जाता है। उसे कहीं भी पूजा '(वरशिप)' नहीं कहा गया है। इसलिए वन्दे मातरम् को तौहीद के विरुद्ध खड़ा करना और उसे इस्लाम-विरोधी बताना बिलकुल भी तर्कसंगत नहीं लगता। वन्दे मातरम् कभी किसी हिन्दू मंदिर या देवालय में नहीं गया जाता है, क्योंकि वह धर्मगीत नहीं राष्ट्रगीत है. इसीलिए राष्ट्रगीत को बुतपरस्ती से जोड़ने में कोई बुद्धिमानी दिखाई नहीं पड़ती। हर इस्लामी देश अपनी मातृभूमि का सम्मान करता है, आस्था रखता है, अपनी मातृभूमि प्रति श्रद्धा रखने का विरोध कोई इस्लामी देश नहीं करता है। अफगानी लोगों ने ही हमने 'मादरे-वतन' शब्द सिखाया, क्या वे लोग मुसलमान नहीं हैं? बांग्लादेश के राष्ट्रगान में मातृभूमि का उल्लेख चार बार आया है। क्या सरे बांग्लादेशी काफिर हैं? इंडोनेशिया, तुर्की और सउदी अरब के राष्ट्रगीतों में भी मातृभूमि के सौंदर्य पर जान अनुपम वर्णन है। क्या ये राष्ट्र इस्लाम का उल्लंघन कर रहे हैं? मातृभूमि कि वंदना पर हिन्दुओं का एकाधिकार नहीं है.इसे हिन्दू, मुसलमान, बौद्ध सभी मानते हैं।
हालाँकि ऐसा नहीं है कि भारत के सभी मुसलमानों को इस पर आपत्ति जताते हों। सच्चाई तो यह है कि वन्दे मातरम् का विरोध मुसलमानों ने नहीं मुस्लिम लीग ने किया था. जबकि उससे पहले इस गीत को हमारे स्वतंत्रता सेनानी आजादी की लड़ाई के दौरान लोगों में देशभक्ति की भावना जगाने के लिए गाते थे। बंगाल के हिन्दुओं और मुसलमानों ने यही गीत एक साथ गाकर बंग-भंग का विरोध किया था, कांग्रेस के अधिवेशनों में मुसलमान अध्यक्षों की सदारत में यह गीत हमेशा लाखों हिन्दू और मुसलमानों ने साथ-साथ गया है, गाँधी के हिन्दू और मुस्लमान सत्याग्रहियों ने चाहे वे बंगाली हों या पठान, वन्दे मातरम् गाते-गाते अपने सीने पर अंग्रेजों की गोलियां खाएँ हैं. उस दौरान स्वाधीनता-आन्दोलन के दौरान विभिन्न रैलियों में जोश भरने के लिए यह गीत गाया जाने लगा। धीरे-धीरे यह गीत लोगों में अत्यधिक लोकप्रिय हो गया। ब्रिटिश सरकार इसकी लोकप्रियता से भयाक्रान्त हो उठी और उसने इस पर प्रतिबन्ध लगाने पर विचार करना शुरू कर दिया। सन् 1896 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने यह गीत गाया। पाँच साल बाद यानी सन् 1901 में कलकत्ता में हुए एक अन्य अधिवेशन में श्री चरणदास ने यह गीत पुनः गाया। सन् 1905 के बनारस अधिवेशन में इस गीत को सरलादेवी चौधरानी ने स्वर दिया। कांग्रेस-अधिवेशनों के अलावा आजादी के आन्दोलन के दौरान इस गीत के प्रयोग के काफी उदाहरण मौजूद हैं। लाला लाजपत राय ने लाहौर से जिस 'जर्नल' का प्रकाशन शुरू किया था उसका नाम वन्दे मातरम् रखा। अंग्रेजों की गोली का शिकार बनकर दम तोड़नेवाली आजादी की दीवानी मातंगिनी हाजरा की जुबान पर आखिरी शब्द ‘वन्दे मातरम्’ ही थे। सन् 1907 में मैडम भीखाजी कामा ने जब जर्मनी के स्टुटगार्ट में तिरंगा फहराया तो उसके मध्य में ‘वन्दे मातरम्’ ही लिखा हुआ था। मौलाना आजाद से बढ़कर इस्लाम को कौन मुसलमान जनता था? उन्होंने स्वयं इस गीत को गाने की सिफारिश की थी।भारत के पूर्व राष्ट्रपति कलाम जी ने हमेशा राष्ट्रगीत गाया और सम्मान किया। कुछ साल पहले विख्यात संगीतकार ए.आर. रहमान ने, जो ख़ुद एक मुसलमान हैं, वन्दे मातरम् को लेकर एक संगीत एलबम तैयार किया था जो बहुत लोकप्रिय हुआ। मुस्लिम लीग को सिर्फ वन्दे मातरम् से ऐतराज़ नहीं था, हर उस चीज़ से उसे नफरत थी, जो हिन्दू और मुसलमान को जोड़े रखती थी। वर्तमान में मुस्लिम नेताओं द्वारा विरोध करना अधिकतर लोगों का मानना है कि यह विवाद राजनीतिक है और जो राष्ट्रगीत नहीं गाने का ऐलान कर रहे हैं, वे देशद्रोही नहीं बुद्धिद्रोही हैं।
राष्ट्रगीत का हिन्दी अनुवाद जिसे गाया जाता है-
वंदे मातरम्।- (हे माँ तुझे प्रणाम)
सुजलां सुफलां मलयजशीतलाम्-
सुजलाम- सुजल (पानी) से भरी हुई, सुफलाम्- फलों से भरी हुई, मलयज का मतलब है मलय (जो की केरल के तट का नाम है) मलयज शीतलाम से यहाँ मतलब ये है की हे माँ तुम, जिसे मलय से आती हुई शीतल हवा ठंडा करती है, कवि भारत माँ की विभिन्न विशिष्टताओं का वर्णन कर रहा है।
स्यश्यामलां मातरम्-
सस्य का मतलब होता है उपज/खेती/फ़सल, श्यामला का मतलब श्याम से है अर्थात गेहरा रंग, पूरे वाक्यांश का मतलब ये है की हे माँ तुम जो फसल से ढकी रहती हो।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीं (शुभ्रय+ज्योत्सना+पुलकित+यामिनी )-
शुभ्र-चमकदार, ज्योत्सना- चन्द्रमा की रौशनी(चांदनी), पुलकित- अत्यधिक खुश/रोमांचित, यामिनी-रात्रि, पूरे वाक्यांश का मतलब है- वो जिसकी रात्रि को चाँद की रौशनी शोभायमान करती है।
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीं (फ़ुल्ल+कुसुमित+द्रुम+दल+शोभिनी )-
फ़ुल्ल- खिले हुए कुसुमित(फूल), द्रुम- वृक्ष, दल- समूह, शोभिनीं- शोभा बढ़ाते हैं, पूरे वाक्यांश का मतलब है- वो जिसकी भूमि खिले हुए फूलों से सुसज्जित पेड़ों से ढकी हुई है।
सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीं-
सुहासिनीं- सदैव हंसने वाली, सुमधुर भाषिनी- मधुर भाषा बोलने वाली
सुखदां वरदां मातरम्-
सुखदां- सुख देने वाली, वरदां- वरदान देने वाली
वंदे मातरम्- (हे माँ तुझे प्रणाम)।