Tuesday, May 10, 2016

किसान हितैषी बयानों से घिरी किसानों की दर्द भरी जिंदगी

किसान के लिए उसके खेत खलिहान और उसकी फसल ही उसका भविष्य, उसकी तरक्की, उसके अरमान, उम्मीदें, सबकुछ होती हैं । लेकिन जब सूखा, बाढ़, अतिवृष्टि, ओलावृष्टि या फिर किसी कारण वश किसान की फसल नष्ट हो जाये तो उसका सबकुछ बर्बाद हो जाता है उसकी उम्मीदें बिखर जाती हैं, सपने चूर चूर हो जाते हैं . वर्तमान समय में भी सूखा पड़ने के कारण देश के अन्नदाता के यही हाल बने हुए हैं ।
देश के अधिकांश भागों में बारिश कम होने और सूखा पड़ने के कारण पिछले वर्ष खरीफ की फसल पूरी तरह नष्ट हुई थीं । इसके बाद ओलावृष्टि के कारण कुछ क्षेत्रों में रबी की फसल पूरी तरह चौपट हो चुकी है । इससे अन्नदाता कहे जाने वाले भारतीय किसानों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है, वह अपनी बेहताशा आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है ।
किसानों का जीवन अस्त-व्यस्त और बेहाल है, जीना मुसकिल हो गया है । किसान खून के आंसू पीने पर मजबूर हैं । किसान आत्महत्या करने पर विवश हैं और हमारे देश की राजनैतिक दल एवं सरकार उसकी विवशता पर उसे सहयोग देने, आर्थिक मदद करने , उसका हौसला बढ़ाने की बजाये उसकी इस दशा पर सिर्फ अपनी राजनैतिक सियासत की गोटियाँ खेल रहे हैं । अब मप्र के किसानों के हाल ही देख लीजिये । वहां पिछले रबी के सीजन में भारी ओलावृष्टि से कुछ जगह फ़सलें पूरी तरह चौपट हो चुकी हैं । ओलावृष्टि से चौपट हुई फसलों का सर्वे भी हुआ। नुकसान की रिपोट भी तैयार हुई । उस समय ओलावृष्टि से पीड़ित किसानों की बदहाल दशा पर खूब राजनीति भी हुई । सभी दल के नेताओं ने खेतों में जाकर नष्ट हुई फसल और पीड़ित किसानों के साथ खूब फोटो निकलवाया । बढ़-चढ़कर बयान बाजी हुई । खूब घोषणाएं हुई, हर संभव मदद की दिलाशाएं दी गई । सरकार द्वारा बिजली बिल माफ़ करने, इस वर्ष ऋण वसूली स्थगित करने, पीड़ित किसानों को एक रुपया किलो चावल, नमक, गेहूं देने की घोषणा की गई, जल्द से जल्द मुआवजा देने का वादा किया गया लेकिन अभी तक किसानों को कोई मदद नही मिल पाई । समय बीता समय के साथ सारी घोषणा, अस्वासन, वादे सब के सब ठंडे बस्ते में चला गया, अब किसानों के हाल जानने वाला कोई नही है
ऐसा नही है कि किसानो की यह स्थिति केवल वर्तमान समय में है । किसानों की यह दयनीय दशा हमेशा से बनी हुई है । चाहे वह कांग्रेस की सरकार को या भाजपा की सरकार सभी के कार्यकाल में किसानों का शोषण हुआ है, उन्हें अनदेखा किया गया है, उनकी दयनीय दशा पर हमेशा से राजनीति हुई है ।
जब से देश आजाद हुआ तब से अपनी समस्याओं के चलते किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। आर्थिक तंगी से जूझ रहे किसानों की आत्महत्याओं के आंकड़े निरंतर बढ़ते ही जा रहे हैं । राष्ट्रीय अपराध लेखा कार्यालय के आंकड़ों के अनुसार भारत भर में 2008 में 16196 किसानों ने आत्महत्याएं की थी । 2009 में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या में 1172 की वृद्धि हुई थी, अत: 2009 के दौरान 17368 किसानों द्वारा आत्महत्या की आधिकारिक रपट दर्ज हुई. राष्ट्रीय अपराध लेखा कार्यालय द्वारा प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार 1994 से 2011 के बीच 17 वर्ष में 7 लाख, 50 हजार, 860 किसानों ने आत्महत्या की हैं । सरकार की तमाम कोशिशों और दावों के बावजूद कर्ज के बोझ तले दबे किसानों की आत्महत्या का सिलसिला रूक नहीं रहा है, देश में हर महीने 70 से अधिक किसान आत्महत्या कर रहे हैं । वहीं केवल यूपी के बुंदेलखंड क्षेत्र में इस वर्ष आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 500 पहुँच गई है, इस क्षेत्र में पिछले 10 वर्षों में 5000 लोग आत्महत्या कर चुकें । बुंदेलखंड के लोग घास की रोटी और घास की ही चटनी खाने को मजबूर हैं ।
महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की स्थिति सभी को मालूम है, जहाँ लोगों के पास पीने तक को पानी नही है उस क्षेत्र के किसानों की क्या दशा होगी । यह सब सोचकर मन बहुत ज्यादा विचलित हो जाता है । लेकिन किसानों की इस दुखदायी घड़ी में राजनैतिक दल उनका साथ देने और उनका सहयोग करने की बजाए, उनकी इस लाचारी एवं बेवसी पर राजनीति कर रहे हैं ।
हाल ही में कुछ माह पूर्व राहुल गाँधी ने किसानों से मिलने के लिए पद यात्रा किये थे। बड़ी आस लगाकर किसान उनसे मिलने पहुंचे कि हमें हमारी समस्या से निपटने के लिए, सूखे की मार से उभरने के लिए, बारिश की चपेट से बचने के लिए सुझाव दिए जायेंगे हमारी कुछ मदद की जाएगी । लेकिन यात्रा में ऐसा कुछ नहीं हुआ, वहां हुआ तो सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप और अपनी वोट बैंक की राजनीति बस, जो 65 वर्षों से हो रहा है । किसानो की कोई मदद नही, कोई सुझाव नही, किसानो की स्थिति आज भी वैसी की वैसी बनी हुई है, चाहे विदर्भ या बुन्देलखण्ड हो या फिर अन्य क्षेत्र । ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस को अचानक से किसानों की याद आने लगी, क्या इसलिए कि कांग्रेस का अस्तित्व अब धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है ? क्या कारण है कि कांग्रेस किसानों की हितेषी बन गई, उसे देश में हो रही नित्य प्रति किसानों की आत्महत्याएं दिखाई देने लगी, उनकी छिनती हुई जमीन याद आने लगी, उन पर अपार सहानुभूति बरसने लगी ।
वैसे ये कोई नयी बात नहीं है ये तो हमेशा से ही हो रहा है, देश के अन्नदाता कहे जाने वाले किसानों के साथ छल कपट कर उनकी भावनाओं से खिलवाड़ हमेशा से ही होता चला आ रहा है, राजनैतिक पार्टियां सिर्फ अपनी वोट बैंक की राजनीति करती आयी हैं । हम लोग हमेशा से यही कहते-सुनते आ रहे हैं, भारत एक कृषि प्रधान देश है, यह देश किसानों का देश है, इस देश के किसान भारत की जान हैं, शान हैं, किसान हमारा अन्नदाता है और ना जाने कितनी तरह की बातें करते हैं और सुनते हैं . इन बातों को अख़बारों, किताबों में पढ़ते-पढ़ते और भाषणों, समाचार चेनलों में सुनते सुनते वर्षों बीत गये, कई पीढियां गुजर गई, फिर भी आज इस देश में जो स्थिति किसानों की है वह किसी से छुपी नहीं है, किसान आज भी गरीब, लाचार, दुखी-पीड़ित और हर तरफ से मजबूर, तंग हालात में जीवन-यापन कर रहा है और राजनैतिक दल उसकी इस हालत पर राजनीति करने में लगे हुए हैं .
हमारे द्वारा ही चुनी गई सरकारें आज इतने संवेदनशून्य हो चुकी हैं कि उन्हें किसानों की मौत पर कोई फर्क नहीं पड़ता । यही नहीं सरकारें किसानों की फसल खराब होने पर उन्हें मुआवजा राशि के रूप में 6₹, से लेकर 100₹ तक देती हैं । आख़िर ये जले पर नमक छिड़कना नहीं तो और क्या है ? किसान परिश्रम, बलिदान, त्याग और सेवा के आदर्श द्वारा देश का उपकार करता है, प्रकृति का वह पुजारी तथा धरती मां का उपासक है । धन से गरीब होने पर भी वह मन का अमीर और उदार होता है । किसान अन्नदाता है, वह समाज का सच्चा हितैषी है। उसके सुख़ में ही देश का सुख़ है और उसकी समृद्धि में ही देश की समृद्धि है । लेकिन फिर भी देश राजनैतिक दल किसानों के साथ छल-कपट की राजनीति कर रहें है और उनकी भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं, बार-बार सिर्फ कोरे वादे करके अपना प्रचार प्रसार करते हैं बस और कुछ नहीं । आज हम देख रहे हैं किसानों की दशा क्या है यह किसी से छुपी नहीं है, किसान आज भी गरीब, लाचार, दुखी-पीड़ित और हर तरफ से मजबूर, तंग हालात में जीवन-यापन कर रहा है
सरकारों द्वारा किसानों के लिए उचित कार्य जो करने चाहिए थे नहीं किया गया । तभी तो आज भी देश में कृषि शिक्षा के विश्वविध्यालय और कॉलेज नाम-मात्र के हैं, उनमें भी गुणवत्तापरक शिक्षा का अभाव है। शिक्षा का ही दूसरा पहलू जिसे प्रबंधन शिक्षा की श्रेणी में रखा जा सकता है, नाम-मात्र भी नहीं है । राष्ट्रीय अथवा प्रदेश स्तर पर कृषि शिक्षा के जो विश्वविध्यालय हैं, उनमें शोध संस्थानों के अभाव में उच्चस्तरीय शोध समाप्त प्राय से हैं । कृषि शिक्षा का व्यापक प्रचार-प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों में होना चाहिए था लेकिन नहीं हुआ । जिन फसलों को किसान बोना चाहते हैं, उनके लिए आवश्यक जलवायु, पानी, भूमि आदि कैसा होना चाहिए । इसका परीक्षण कर संबंधित किसानों को शिक्षित किये जाने की भी व्यवस्था कराई जानी चाहिए ताकि वह सुझावानुसार कार्य करने के लिए सहमत हो। इस हेतु अच्छी प्रजाति के बीजों की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए, बीज की बुवाई के समय कृषि क्षेत्र के तकनीकी विशेषज्ञ अपनी देखरेख में बुवाई कराएं तथा उन पर होने वाली बीमारियों, आवश्यक उर्वरकों, सिंचाई, निकाई, निराई, गुड़ाई आदि का कार्य आवश्यकतानुसार समय-समय पर कृषि विशेषज्ञों के निर्देशन में कराया जाना चाहिए, इससे उत्पादन बढ़ेगा एवं किसान समृद्ध होगा । किसान समृद्ध होगा तभी तो देश समृद्ध होगा ।

लेखक – सत्यम सिंह बघेल

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