Tuesday, May 10, 2016

बुंदेलखण्ड में सूखा संकट और सियासत

स्वतन्त्रता प्राप्ति के वर्षों बाद भी उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश का बुंदेलखण्ड क्षेत्र सूखे का शिकार है । उत्तर प्रदेश के पचास से अधिक जिलों में सूखे की मार पड़ी है, जिससे भूख-प्यास से लोगों के दम तोड़ने की भी खबरें आई हैं। इस पूरे क्षेत्र में कृषि ही लोगों के जीवन यापन का मुख्य आधार है। सिंचाई के लिए जल न होने के कारण क्षेत्र में अकाल जैसे हालात हो गए हैं। लोग किसानी छोड़कर मजदूरी करने को बाध्य हो गए हैं। भुखमरी जैसे हालात से गुजर रहे इस क्षेत्र में अन्य समाजिक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं। क्षेत्र से लोगों का पलायन जारी है। बच्चों के स्कूल छोड़कर बालमजदूरी करने की घटनाओं में 24 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। पौष्टिक भोजन नहीं मिलने से बच्‍चे कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। सूखा और गरीबी के कारण घास की रोटी खाने और गड्ढे का पानी पीने को मजबूर हैं । सूखे से निपटने में अक्षम माता पिता द्वारा अपने बच्चों को बेचने तक की घटनाएं सामने आ रही हैं।
वहीं राजनैतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चालू है, प्यासे बुन्देलखण्ड को लेकर दलों के बीच सियासत जोरों पर है । वैसे तो बुंदेलखण्ड सदियों से प्रत्येक पांच साल में दो बार सूखे का शिकार होता है लेकिन केन्द्र और राज्य में सरकार किसी की भी हो सभी ने प्रकृति की नियति को नजर अंदाज ही किया है। मनमोहन सिंह सरकार ने बुंदेलखण्ड के लिए पैकेज दिया था लेकिन इस क्षेत्र में समस्या नहीं सुलझी लोग घास खाने को मजबूर हैं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी जब बुंदेलखण्ड में पद यात्रा के लिए पहुंचे तब महिलाओं ने अपनी दर्द भरी दास्तां सुनाई । कि जब बच्चे रात में खाना मांगते हैं तो महिलाएं उन्हें रोटी देने की बजाए चाटें मारकर सुला देती हैं क्योंकी उनके पास इतना अनाज नहीं की बच्चों को कई बार खाना और दूध दे सकें। ये दास्तान बुंदेलखण्ड के हर  घर की है। लोगों के पेट से उफन रही भूख प्यास की आग पर सियासत की हाड़ी जरूर लगती है लेकिन समस्या का कोई समाधान नहीं निकला । राहुल गांधी की बुंदेलखण्ड में पद यात्रा पर कोई अपत्ती नहीं लेकिन देश में सार्वधिक समय कांग्रेस ने राज किया है। उत्तर प्रदेश ने देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिये है काश कांग्रेस ने समझा होता की समय का निदान कैसे होगा बुंदेलखण्ड की समस्या कम वर्षा की है और ऐसा कई सदियों से होता रहा है । अगर इस बात पर कांग्रेस संवेदनशील होती तो समस्या का समाधान संसाधनों के बेहतर प्रबंधन से हो सकता था, लेकिन दुर्भाग्य है कि नही हुआ । बुंदेलखण्ड की विडम्बना ये है कि यहां हीरा ग्रेनाइट की खदाने है। जंगल तेंदू पत्ता आवला से पटे पड़े हैं लेकिन इसके वाबजूद ये क्षेत्र सरकारी उपेक्षा का शिकार तो है ही साथ ही अल्प वर्षा का शिकार लगातार हो रहा है।
आज बुंदेलखण्ड की हालत इतनी खराब है कि वे मृत्यु शयया पर पड़ा नजर आ रहा है ।किसानों को पहनने के लिए कपड़े और खाने को अनाज नहीं हैं। यहां तक कि‍ चारा नहीं होने की वजह से जानवर भी दम तोड़ रहे हैं। सूखे का मतलब सिर्फ पानी का संकट नहीं है। रोज़गार का भी संकट है। खेती नहीं हुई है। किसान का कर्ज़ा बढ़ गया है। आंकड़ों के मुताबिक बुंदेलखंड में 80.53 फीसदी किसान कर्जदार है। मौत की ट्रेन लगातार अपने रफ़्तार से बुन्देलखण्ड में दौड़ रही है । लाशों और जल संकट पर सियासत का माहौल गर्म है, यहां मौत की फसल अपनी रफ्तार से पक रही है । मगर उन गांव का हाल जस का तस है जहां संनाटे को चीरती किसान परिवारों की चींखें सिसकियों के साथ हमदर्दी जताने वालों की होड़ में बार-बार शर्मसार होती है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, बुंदलेखंड में 2009 में 568, 2010 में 583, 2011 में 519, 2012 में 745, 2013 में 750 और 2014 में 58 किसानों ने आत्महत्या कर मौत को गले लगा लिया। 6 वर्षों में 3,223 किसानों ने आत्महत्या की। 2015 के आंकड़े अभी जारी नहीं हुए हैं।
कभी बुन्देलखण्ड के लोग कम पानी में जीवन जीते थे लेकिन समय के साथ साथ जल स्त्रोत नष्ट हो गये । सिंचाई के पानी की कमी,गिरते जलस्तर और सूखे की मार के कारण खेती का संकट बढ़ता गया राज्य सरकारों ने भी खेतों तक नहर द्वारा पानी पंहुचाने की उचित व्यवस्था नहीं की । ऐतिहासिक अतीत की गवाह रही इस क्षेत्र की धरती जर्जर जर्जर होती गयी। किसान हाशिये की तरफ जाते रहे और भुखमरी का शिकार हो गये। कर्ज के बोझ से दबे होने के कारण मौत को गले लगाने लगे ।
जल संरक्षण उपायों का अभाव और जल संरक्षण का परम्परागत तरीकों के प्रति उदासीनता ने इस संकट को इतना बढ़ा दिया हैकि अब समाधान के लिए ठोस उपाये करने होंगे। जल संकट की यह भयंकर समस्या केवल कुछ टैंक पानी या जल ट्रेन चलाने से समाप्त नही होगी बल्कि कोई बृहद एवम् स्थाई योजना बनाकर काम करना होगा । साथ ही किसान को आत्महत्या से बचाना है, तो उसकी जमीन, मवेशी और चारे को तो बचाना ही होगा। उसे सक्षम बनाना है, तो पहले उस तक बीज, खाद और तकनीक को वाजिब दाम मे पहुंचाना होगा। भंडारण की पर्यापत व्यवस्था करनी होगी। बाजार की समझ पैदा करनी होगी। संसाधनों के बेहतर प्रबन्धन से ही तस्वीर बदलेगी अन्यथा बच्चों के रोटी मांगने पर मां चाटें मारती रहेंगी। ये भी याद रखना होगा कि जिस देश का बचपन भूखा हो उस देश की जवानी क्या होगी।

सत्यम सिंह बघेल

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