Sunday, May 1, 2016

दहेज प्रथा से परिवारों में बढ़ती हिंसा

मीडिया में एक खबर चल रही है कि बसपा के राज्यसभा सांसद की पुत्रवधु ने संदिग्ध परिस्थितियों में लाईसेंसी पिस्तौल से सिर पर गोली मारकर आत्महत्या कर ली। सांसद के बड़े बेटे सागर कश्यप की पत्नी हिमानी ने बाथरूम में जाकर लाईसेंसी पिस्तौल से खुद को गोली मार ली। सागर खुद एमएलसी हैं ।
सांसद की पुत्रवधु हिमानी बसपा सरकार में मंत्री रह चुके बदायूं के पूर्व विधायक हीरा लाल कश्यप की बेटी थी। सांसद परिवार का दावा कर रहा था कि उनकी बहू ने खुद को बाथरूम में लॉक करके गोली मारी थी। लेकिन वहीं हिमानी के पिता का आरोप है कि दहेज प्रथा के चलते उसकी हत्या की गई है, उनका आरोप है कि ससुराल वाले आये दिन दहेज को लेकर उनकी बेटी को प्रताड़ित करते थे । सांसद परिवार आरोप को नकार रहा है, किन्तु फिलहाल राज्यसभा सांसद और उनकी पत्नी को पुत्रवधु की रहस्यमय मौत के मामले में दहेज निरोधक कानून का मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया गया । आखिर सच्चाई क्या है ? इस मामले में घटना की पूरी जांच होने के बाद ही कुछ कहा जा सकता है, अभी किसी निष्कर्ष तक नही पहुंच सकते ।
अगर हिमानी की मौत दहेज की प्रताड़ना से हुई है, तो यब एक गंभीर विषय है और यह केवल उस परिवार का नही बल्कि सम्पूर्ण समाज का विषय है । एक धनवान व सभी तरह के संसाधनों से परिपूर्ण परिवार । अगर इस तरह दहेज के लिए अपनी बहु को प्रताड़ित करे  और इतना प्रताड़ित करे कि अंत में उसे मौत को गले लगाना पड़े तो यकीनन समाज के लिए यह बहुत ही गंभीर विषय है । यह घटना हमे सोचने पर मजबूर कर देती है कि आखिर समाज किस ओर जा रहा है जो सबकुछ रहते हुए भी लालचवश कुछ रुपयों के लिए । उस देवीय स्वरूपा नारी पर अत्याचार करने लगते हैं जिसकी नवरात्रि में नव दिन उपासना करते हैं, उसी नारी को प्रताड़ित करते है, उस पर हिंसा करते हैं, जिसे हम देवी मानकर पूजते हैं और सारा समाज मूकदर्शक बनकर इस कृत्य को देख रहा है । आखिर क्यों समाज इस तरह के दोयम दर्जे का व्यवहार करता है ।
समाज में दहेज़ प्रथा अमावस के गहरे अंधियारें की तरह फैली हुई है और यह कुप्रथा दिन पर दिन अपनी जड़ें मजबूत करती जा रही है | इस युग में स्त्री और पुरुष कंधे से कन्धा मिलाकर साथ चल रहे हैं, हर एक क्षेत्र में परस्पर अपना योगदान दे रहे है । फिर भी इसी समाज में देहज प्रथा के नाम पर औरतों के साथ हुए उत्पीड़न के मामले आये दिन सामने आते रहते हैं । फिर प्रश्न ये उठते हैं कि "हमारे जीवन में धन संपत्ति का कितना महत्व है ? क्यों अकारण ही हम सभी किसी न किसी पर हर बात का दोष मड़ते रहते है ? क्या हम इतने सक्षम नहीं है कि अपनी मेहनत से कुछ प्राप्त कर सके ? क्या अपने जीवन को जीने के लिए दूसरे के धन पर निर्भर होना उचित है ? क्या अपनी महत्वकांक्षाओं को पूरा करने के लिए किसी की भी जान लेना उचित है ? अक्सर यह सवाल हम सब के मन को विचलित सा कर देते हैं । अगर स्त्री और पुरुष एक समान है, तो देहज प्रथा का होना कितना अनिवार्य है ? जब दोनों ही एक बराबर शिक्षित और सक्षम हैं, तो इतना भेदभाव रखना क्या उचित है ? वर्तमान दौर में स्त्री क्या कुछ नहीं कर रही है हर जगह अपने नाम का परचम लहरा रही है उदाहरण के तौर पर “चाहे वो पर्वत की सबसे ऊँची चोटी पर पहुंचना हो और या फ़ौज़ में जाना हो हर जगह अपने माता-पिता का नाम रौशन कर रही है | फिर भी आये दिन दहेज प्रथा के चलते औरते आत्महत्या कर बैठती हैं या फिर उन्हें ज़िंदा जलाकर मार दिया जाता है । पुलिस थाने में अक्सर जलाकर मार देने के मामले दर्ज होते हैं | रपट लिखायी तो जाती है मगर महिला पर इतना दबाव बना दिया जाता है कि अंत में उसको अपनी शिकायत वापस ही लेनी पड़ती है । कभी महिला को अपने माता पिता से अत्यधिक धन राशि न लाने पर ताने दिए जाते हैं, कभी उसको प्रताड़ित किया जाता है या तो फिर उसे वापस ही भेज दिया जाता है | अकारण ही उसको इतना विवश कर दिया जाता है कि वो खुद ही अपना जीवन समाप्त करने को मजबूर हो जाती है और ऐसे हालात के चलते हुए खुद को नुक्सान पंहुचा लेती है |
अभिप्राय यह है कि समाज में जो भी परम्पराये बनायीं गयी हैं वो हमारे सहयोग के लिए हैं न कि किसी को भी शोषित करने के लिए । महिला का भी बराबर का अधिकार है वो इतनी सक्षम है कि स्वयं को खुद ही उन्नति के मार्ग पर अग्रसर कर सकती है । इसलिए उसे असहाय या लाचार न समझें, उसका सम्मान करें, उसे नीचा न दिखायें और अपनी इच्छाओ में इतने अंधे न बने कि आप इंसान कहलाने लायक न रह जायें । क्योकि वो भी किसी की बेटी है किसी की पत्नी, बहू और माँ होने से पूर्व, ये कहना अनुचित नहीं होगा कि समाज कभी ऐसी बातों को स्वीकृति नहीं देता है, तो फिर ऐसी स्थिति में एकजुट होकर कोई भी अपना योगदान क्यों नही देता है । हर व्यक्ति को सदैव ये याद रखना चाहिए कि धन सिर्फ एक जरुरत है जिंदगी नहीं और अपनी महत्वकांशाओ को इतना न बढ़ाये जो किसी भी व्यक्ति की जान ले ले । अतः समाज को एवं समाज के हर व्यक्ति को देहज प्रथा पर रोक लगाने की हर मुमकिन कोशिश करनी चाहिए, एकजुट होकर पीड़ित महिलों की सदैव सहायता करें । एकता में बहुत शक्ति है, एकता ऊँचे से ऊँचे पर्वत को हिला सकती है, समुद्र को चीर सकती है | ऐसे शिक्षित होने का क्या लाभ है जहां कुप्रथाओ के चलते महिलायें सिर्फ शोषित होती रहें और हम सब तमाशबीन बने रहें । एक चीटी अकेले अपना खाना लेकर आने की कोशिश करती है और नहीं ला पाती, तो उसकी सहयोगी चीटियाँ उसके साथ चल पड़ती हैं, उसी तरह अगर एक इंसान अपनी आवाज़ को बुलंद करेगा उसी पहर एकजुटता प्रारम्भ होगी, और वह आवाज एक बुलन्द आवाज बन जाएगी | सदैव याद रखे कि देहज प्रथा सिर्फ एक प्रथा है उसके चलते किसी भी महिला को मानसिक और शारीरिक यातना देना उचित नहीं है, इसलिए इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज उठाना बहुत जरुरी है । इसके लिए हम सभी दोषी हैं, हम सभी को इस समाज से दहेज़ प्रथा को जड़ से उखाड़ फेकना होगा इसमे सरकार दोषी नहीं है, सरकार ने तो कानून बना दिया दहेज़ लेना-देना दोनों अपराध हैं फिर भी हम-आप नहीं मानते हैं खुलेआम कानून का उलंघन करते हैं कमजोरी हमारे और आपके अन्दर है जिसका परिणाम आपके सामने है, गलती खुद करते हैं दोष सरकार और समाज को देते हैं, सरकार और समाज दोनों का निर्माण हम आप ही ने तो किया है ।

सत्यम सिंह बघेल

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