Sunday, May 1, 2016

शराब प्रतिबंध के लिए हो राष्ट्र व्यापी जनआंदोलन

बिहार की नीतीश कुमार सरकार ने राज्य में पूर्णरूप से शराब पर प्रतिबंध लगा दिया है । अब बिहार में देशी के साथ विदेशी शराब भी उपलब्ध नहीं होगी। इसके तहत अब राज्य में शराब बेचना, रखना और पीना पूरी तरह प्रतिबंधित हो गया है, जो कि नीतीश सरकार का यह बेहद सराहनीय कदम है । बिहार जैसे राज्य में शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर नीतीश कुमार ने यह बता दिया है कि वे सच में सुशासन बाबू हैं । क्योंकि हालिया एक सर्वे के अनुसार बिहार में शराब पीने वालों की संख्या लगभग 29 फीसदी है । महिलाओं के शराब पीने का प्रतिशत 0.2 फीसदी है । इस हिसाब से राज्य की कुल आबादी में लगभग साढ़े तीन करोड़ लोग शराब पीते हैं । इतनी अधिक संख्या में जहां लोग शराब पीने वाले हों वहां शराब पर प्रतिबंध लगाना वास्तव मे काबिले तारीफ है । शराब पर पूर्ण प्रतिबन्ध के बाद बिहार राज्य गुजरात, नगालैंड और मिजोरम के बाद चौथा 'ड्राई स्टेट ' बन गया है। 1958 से गुजरात में भी शराब पर पूरी तरह से रोक है । 1961 से मणिपुर में भी नहीं मिलती है । शराब पर प्रतिबंध से राज्य की आम जनता खास कर महिलाओं में खुशी का माहौल बना है, आम जनता ने इस फैसले के लिए सरकार को धन्यवाद दिया ।  बिहार में शराबबंदी का बेहतर माहौल देखने को मिल रहा है, वहाँ अब तक 1,25,80,000 लीटर शराब को नष्ट कर दिया गया है। वैसे बिहार में  इसके पहले भी 1977-78 में भी राज्य में शराबबंदी लागू की गई थी ।  मगर सरकार इसे रोकने में नाकाम रही थी । बिहार से पहले आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, मिजोरम और हरियाणा में शराबबंदी का प्रयोग नाकाम हो चुका है ।
मुझे लगता है कि बिहार में सामाजिक परिवर्तन के लिए यह सही समय है। इस फैसले से बिहार में सामाजिक परिवर्तन की बुनियाद रखी जा सकती । इसलिए नीतीश सरकार को चाहिए कि वह कड़े कानून के प्रावधान के साथ-साथ इस पहल को जनआंदोलन का रूप दे और लोगो को शराब से होने वाले नुकसान व बीमारियो से अवगत कराये तथा विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से आम जन को जागरूक करे ।
वैसे तो शराब पर प्रतिबंध के लिए पूरे देश में ही जन आंदोलन की जरूरत है । पूरे देश में शराब पर रोक लगना ही चाहिए । शराब सेवन से खोखले हो रहे समाज को बचाने के लिए आज जरूरी है कि शराब पर एक राष्ट्रीय सोच कायम हो ताकि इस बुराई को जड़ से उखाड़ कर फेका जा सके । युवाओं में शराब के बढ़ते सेवन से नयी पीढ़ी का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह से दुष्प्रभावित हो गया है । वहीं शराब सेवन के कारण सबसे ज्यादा नुकसान पारिवारिक जीवन और सामाजिक रिश्तों पर हो रहा है । शराब की दुःखदायी प्रवृत्ति के चलते जहां हजारों परिवार टूटकर बिखर गये हैं, वहीं शराबजनित अपराधों में भी लगातर वृद्धि हो रही है । सबसे दुःखद पहलू यह है कि महिलाओं के प्रति हुए अपराधों और अत्याचारों की वजह शराब ही है । महिलाओं के अपहरण और बलात्कार की घटनाएं दिनों-दिन बढ़ती जा रही हैं । सिगरेट, गांजा, अफ़ीम, चरस बुरी चीज़ें हैं, जुआ भी, वेश्यावृति भी और न जाने कितनी बुराइयाँ जिनकी सूची अनंत है, शराब भी उन्हीं में से एक है । शादी-विवाह हो, बच्चे का नामकरण संस्कार या और कोई धार्मिक उत्सव का अवसर, महंगी से महंगी शराब पीने और पिलाने का चलन घर-घर में है । आज हालात ये हैं कि एक सामर्थ्यविहीन व्यक्ति की भी पहुंच मंहगी शराब पर है । शराब पीने की लत एक चतुर, शक्तिशाली और मायावी बीमारी है। इसकी गिरफ्त में आने वाला इसे पाने के लिए तरह-तरह के बहाने बनाता है। शराबी को जब इसकी तलब होती है तो वह झूठ बोलने, कसमें खाने से भी परहेज नहीं करता। वह इस लत के सामने खुद को कमजोर पाता है। शराब की लत के शिकार लोगों को जब तक शराब न मिले, तब तक वे बेचैन रहते हैं। ऐसे लोग नशे के सेवन से पहले असामान्य रहते हैं और उसे पाने के बाद खुद को सामान्य स्थिति में पाते हैं। यह स्थिति ऐसे लोगों को पूरी तरह बीमार बना देती है। शराब की लत एक लाइलाज बीमारी है। यह कई बहाने से शरीर में प्रवेश करती है और धीरे-धीरे जिंदगी को अपनी गिरफ्त में ले लेती है। जब यह हद से बढ़ जाती है तो मुक्ति पाने के लिए शराबी छटपटाने लगता है।
एक वक्त था जब मदिरापान सामत वर्ग तक सीमित था । बडे उद्योगपति, बड़े अफसर और सामर्थ्यवान व्यक्ति ही शराब का सेवन करते थे, मगर आज यही शराब उस छोटे दायरे से निकलकर बहुत बड़े दायरे में फैल चुकी है । शराब पीना-पिलाना आज आधुनिकता का पर्याय बनता रह है । अभिजात्य वर्ग जो शराब पीता भी है और जीता भी, लेकिन निचला तबका जो शराब पीने में समर्थ तो नहीं है मगर पी रहा है और बे-मौत मर रहा है ।
शहरों की तरह गांव भी शराब के चपेट में है । गांव-गांव की हालत आज यह हैं कि पन्द्रह से बीस प्रतिशत किसान शराब के आदी होकर अपनी जमीन गवा चुके हैं और दाने-दाने को मोहताज हैं । शहरों से चली आधुनिकता की हवा ने गावों को भी अपने रंग में रंग लिया है ।
आज नतीजा यह है कि परिवार टूट रहे हैं, बिखर रहे हैं । शराब और शराबियों के कारण सबसे अधिक अपमान और कष्ट माँ और पत्नी के रूप में नारी को ही झेलना पड़ता है । शराब के कारण ही लोग दुर्धटना के शिकार हो रहै हैं या अन्य तमाम तरह के अपराधों में लिप्त हो रहै हैं । शराब से शारीरिक और मानसिक बीमारियां तो होती ही हैं साथ ही ऐसे लोग अपराध से भी जुड़ जाते हैं। शराब मानसिक बीमारी का एक आधार है। यह तंत्रिका तंत्र, लिवर और पेट की बीमारियों की वजह बन सकती है। इससे दिल के रोग का भी डर रहता है। शराबी की वजह से सबसे पहले पारिवारिक समस्या बढ़ती हैं। वे तरह-तरह की घरेलू हिंसा करते हैं। शराब की लत कैंसर से भी घातक बीमारी है। कैंसर से सिर्फ एक शख्स बीमार होता है, पर शराब की लत सीधे तौर पर कई लोगों को बीमार बना देती है। शराब में इथाइल ऐल्कॉहॉल का इस्तेमाल होता है। यह इंसान के खून में आसानी से घुल जाता है। यही वजह है कि शराब लेने के साथ ही शरीर के तमाम अंगों पर इसका असर पड़ने लगता है। लंबे समय तक इसे लेने से लिवर सिरोसिस की समस्या हो सकती है। यह मुश्किल से छूटने वाली बीमारी है। इथाइल ऐल्कॉहॉल से पाचन क्रिया में भी गड़बड़ी होती है।
राजस्व के लोभ मे किसी भी सरकार ने इसे रोकने के लिए कठोरता से व प्रमुखता से पहल ही नही किया । अब तक जितनी भी सरकारें आई सभी के द्वारा यह तर्क दिया जाता है कि शराबबंदी या मद्यपान निषेध जैसे कार्यों में सरकार की तरफ से नहीं बल्कि समाज की ओर से पहल होनी चाहिए । यह सत्य है कि सामाजिक चेतना और जनता के संकल्प के बिना शराबबंदी का कोई भी सरकारी प्रयास सफल नहीं हो सकता । किन्तु यह भी सत्य है कि राजनीतिक इच्छा स्पष्ट हो तो जनता भी शराबबंदी के निर्णय का हमेशा स्वागत करेगी, जिस तरह से बिहार में किया । शराब के कारोबार में फायदा उठाने वाला वर्ग बहुत छोटा है, जबकि शराब के दुष्परिणामों से आहत होने वाला वर्ग काफी बड़ा । हम भारतीय असहज मुद्दों से बचने में उस्ताद हैं। असहज मामलों पर चर्चा करने के बजाय हम ढोंगी और झूठा बनना ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसा ही एक मुद्दा है शराब के सेवन का, जिस पर चर्चा से परहेज करना हम अच्छी तरह सीख चुके हैं। हमसे उम्मीद की जाती है कि हम शराब से संबंधित हर चीज की सार्वजनिक रूप से आलोचना करेंगे। वहीं व्यक्तिगत स्तर पर करोड़ों भारतीय शराब का मजा लेते हैं। इनमें केवल बिजनेसमैन और कॉपरेरेट दुनिया में काम करने वाले लोग ही नहीं हैं, बल्कि राजनीतिज्ञ, डॉक्टर, शिक्षक और पत्रकार भी शामिल हैं। लेकिन अब समय आ गया है । समाज को गर्त मे धकेलने वाली इस कैंसर से भी घातक बीमारी को जड़ से मिटाने के लिए राष्ट्र व्यापी जनांदोलन छेड़ने की आवश्यकता है । इसके लिए समाज, सरकार और प्रशासन वर्ग सभी को मिलकर पहल करनी होगी ।

सत्यम सिंह बघेल

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