पहले का समाज अत्यधिक कुरूतियों की जंजीरों सेजकड़ा हुआ था, उस समय समाज में काफी कुरुतियाँ प्रचलित थी, जैसे कन्या वध, औरतों एवं लड़कियों की क्रय-विक्रय की प्रथा, वेश्यावृत्ति, बाल-विवाह, पुत्री के जन्म को अशुभ मानना, पर्दा प्रथा, जौहर या सती प्रथा इत्यादि | बहुत से विद्वानों ने इन प्रथाओं को पाप तथा आत्महत्या की संज्ञा देते हुए इसका विरोध किया | दूसरी तरफ राजा राममोहन राय के प्रयासों से बैन्टिक ने एक कठोर कानून बनाकर सती प्रथा को गैर कानूनी घोषित कर दिया, जिसके कारण साथ-साथ कई कुरुतियों का अन्त हुआ | उस समय समाज का दृष्टिकोण अत्यन्त संकीर्ण तथा अवैज्ञानिक था, उस समय समाज भाग्यवादिता एवं कुसंस्कारों के प्रभाव से ग्रसित था और उनमें तार्किक क्षमता की अत्यंत कमी थी | इसी कारण से समाज में भयानक गंभीर कुरुतियाँ फैली हुई थीं, कन्या बद्ध, औरतों एवं लड़कियों की क्रय-विक्रय की प्रथा, वेश्यावृत्ति, बाल-विवाह, पुत्री के जन्म को अशुभ मानना, पर्दा प्रथा, सती प्रथा जैस भयावह कुरूतियों के साथ-साथ समाज और भी अनेक कुरूतियों से जकड़ा हुआ था | उस समय समाज में छुआछूत की भावनाओं ने मजबूती से अपनी जड़ें जमाई हुई थी समाज का एक वर्ग दूसरे वर्ग का पूर्ण रूप से अनादर कर रहा था | जब कि यह प्रथा समाज के लिए अत्यंत गंभीर समस्या थी । लोग यह समझते थे कि जाति व्यवस्था ईश्वर की देन है। उन्हें यह नहीं पता था कि यह कुछ स्वार्थों का पोषण करने वाली एक सामाजिक व्यवस्था है। अब मनुष्य की महत्ता का आधार कर्म के स्थान पर जन्म बना हुआ था | ऊँच-नीच की एक गहरी खाई बनी हुई थी जो ऊँची जाति में जन्म लेता उसका समाज में आदर, सत्कार होता था, वह सम्मानीय व्यक्ति माना जाता था, भले ही उसके कर्म कितने ही बुरे क्यों न हों और जो व्यक्ति नीची जाति में जन्म लेता था, भले ही उसके कर्म आदर्शमय हों उसे हर जगह उलाहना ही मिलती थी | उस समय, वेश्यावृत्ति, अंधविश्वास, समाज के परम्परागत नियम-कायदे जैसी कई सामाजिक कुरुतियाँ समाज में फैली हुई थीं | स्त्री को सिर्फ उपभोग की वस्तु ही माना जाता था | ऐसी और भी अनेक कुप्रथाएं समाज में फैली हुई थीं लेकिन आधुनिक शिक्षा के सम्पर्क से लोगों के दृष्टिकोण का विकास हुआ और वे आधुनिक ज्ञान-विज्ञान के नवीन प्रकाश की ओर तीव्र गति से बढ़े एवं जागरूक हुए। भारतीय समाज जैसे-जैसे शिक्षित होता गया इन कुप्रथाओं का विरोध करता गया और साथ ही इन कुप्रथाओं से समाज को मुक्त करता गया | जैसे-जैसे समाज शिक्षित हुआ आधुनिकता का जैसे ही समाज को ज्ञान हुआ वैसे ही समाज में छुआछूत की भावना कम हो गई। लोग यह समझ गये कि जाति व्यवस्था ईश्वर की देन नहीं है। अपितु कुछ स्वार्थों का पोषण करने वाली एक सामाजिक व्यवस्था है। अब मनुष्य की महत्ता का आधार जन्म के स्थान पर कर्म बन गया इस प्रकार शिक्षा एवं समाज की जागरूकता ने निम्न जातियों को अपनी सामाजिक स्थितियों को ऊँचा उठाने के लिए प्रेरित किया और जीवन के प्रति नवीन दृष्टिकोण प्रदान किया। अस्पृश्यता, बहुपत्नी प्रथा, देवदासी प्रथा एवं मृत्यु भोज आदि सामाजिक एवं धार्मिक कुरीतियों की ओर समाज का ध्यान आकर्षित हुआ एवं इनके दुष्परिणाम से समाज अवगत हुआ । परिणामस्वरुप देश के विभिन्न भागों में अनेक धार्मिक एवं समाज सुधार आंदोलनों का प्रादुर्भाव हुआ। इन समाज सुधारकों एवं इनके आंदोलनों ने स्त्रियों की दशा सुधारने में महत्वपूर्ण योगदान दिया | साथ स्त्रियों को शिक्षा प्राप्त करने तथा अपने अधिकारों के प्रति जागरुक होने की प्रेरणा दी | समाज सुधारकों ने स्त्री-पुरुष समानता पर बल दिया और स्त्रियों को घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर कार्य करने की स्वतंत्रता का समर्थन किया। यही नहीं, आर्थिक क्षेत्र में स्त्रियों के प्रवेश का भारतीय समाज को प्रोत्साहन दिया। यहीं से भारतीय समाज में आर्य समाज, ब्रह्मसमाज एवं रामकृष्ण मिशन आदि आन्दोलनों का उदय हुआ। साथ ही इन आंदोलनों एवं आधूनिक शिक्षा के कारण समाज जागरूक हुआ और समाज ने बाल-विवाह एवं बहु-विवाह पर प्रतिबन्ध लगाने पर बल दिया तथा विधवा विवाह एवं अन्तर्जातीय विवाह को प्रोत्साहन दिया। लोगों के खान-पान, रहन-सहन, वेशभूषा एवं व्यवहार के अन्य प्रतिमान प्रभावित हुए | समाज में अछूतों की दशा बहुत दयनीय थी। समाज में रहने वाले लोग उनके साथ छुआछूत का व्यवहार करते थे। आधुनिक शिक्षा एवं समाज की जागरूकता ने समाज में समानता का स्थान दिलवाया। कुप्रथाएं मिटाने एवं समाज में जागरूकता लाने के लिए न जाने कितने आन्दोलन हुए और न जाने कितने आन्दोलनकारियों ने समाज सुधारकों ने इस कुप्रथा को मिटाने की लड़ाई लड़ी और वे बहुत हद तक सफल भी हुए | किन्तु आज भी समाज में किसी घातक बीमारी की तरह ये कुप्रथायें फैली हुई हैं और समाज को अंदर ही अंदर खोखला कर रही हैं, समय बदल गया लेकिन कुछ कुरुतियां वैसी की वैसी ही बनी हुई हैं लेकिन अब समय आ गया है इन कुरूतियों को समाज से उखाड़ फेकने का । हम हर दिन इस ब्लॉग के माध्यम से समाज में फैली कुरुतियां उसके दुष्प्रभाव और उसे समाज से उखाड़ फेकने के बारे में चर्चा करेंगे ।
लेखक-सत्यम सिंह बघेल
केवलारी, सिवनी
मध्य प्रदेश
लेखक-सत्यम सिंह बघेल
केवलारी, सिवनी
मध्य प्रदेश