Sunday, February 21, 2016

आरक्षण की आग में जलता देश

आरक्षण कुछ चापलूस नेताओं द्वारा चलाई जा रही एक ऐसी कला है, मानों जैसे एक हाथी को एक छोटी खूँटी में बाँधने के लिए बाध्य किया जा रहा है | इंसान के पास विचारने-सोचने की अद्वतीय शक्ति है, जिससे वह कोई भी महान रचनात्मक कार्य कर सकता है | लेकिन हमारे देश में आरक्षण की ऐसी मानसिक गुलामी फैली है कि जिसने व्यक्ति की बौद्धिक छमता को बांध कर रख दिया है, छोटी सोच लेकर जीने पर मजबूर हैं | व्यक्ति के पास किसी महान लक्ष्य की प्रतियोगिता के लायक हिम्मत ही नहीं बचती, कुछ नया सोचने की उसकी शक्ति बांझ हो जाती है, आरक्षण की सुविधा जिसे मिल रही है वो अपनी बौद्धिकता खोने को मजबूर है |
संविधान निर्माताओं द्वारा आरक्षण इसलिए लाया गया था ताकि पिछड़ों को आगे लाकर समाज में समानता लाई जा सके और यह भी निर्णय लिया गया था कि तय अवधि के बाद इसे समाप्त कर दिया जायेगा लेकिन इसे अभी भी समाप्त नहीं किया गया | समाप्त करने की बजाय इसे दिनों-दिन बढ़ाया गया और इस पर राजनीति होने लगी | पहले     पढ़ाई में आरक्षण, फिर नौकरी में अब प्रमोशन में भी आरक्षण ये क्या तमाशा है | आरक्षण की व्यवस्था जिसके लिए की गई है, उसका ज्यादा भला तो नहीं हुआ, लेकिन हाँ जातिवाद फैलाकर उसकी नैया पर सवार होकर राजनीति की वैतरणी पार करने वालों को जरुर फायदा हुआ है | कुछ लोगों ने भैसों का चारा खा गये, तो कुछ ने पार्कों में अपनी मूर्तियाँ सजवा लिये | देश में जो भी निम्नस्तर की राजनीति हुई, जितने भी निम्नस्तर के नेता पैदा हुए इसी जातिगत आरक्षण के नाम पर टिके रहे | अगर जातिगत आरक्षण बंद हो जाये तो इस पर राजनीति कर देश को बाँटने वाले नेताओं की दुकाने भी बंद हो जायेंगी |
भारत देश जब स्वतंत्र हुआ, उसके पहले ही संविधान में कुछ समूहों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के रूप में संवैधानिक रूप से सूचीबद्ध कर दिया गया था, उस समय के आधार पर संविधान निर्माण समिति का कहना था कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति ऐतिहासिक रूप से पिछड़े रहे हैं, उन्हें समाज में सम्मान और समान अवसर नहीं दिया गया है | इसी आधार पर संविधान का निर्माण हुआ तब संविधान निर्माण समिति ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को सरकारी प्राप्त शिक्षण संस्थाओं की खाली सीटों, तथा सरकारी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों के लिए अनुसूचित जाति को 15 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 7.5 प्रतिशत का आरक्षण रखा, साथ ही आर्टिकल 330 में लोकसभा और विधानसभा में भी इसकी जातीय जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण रखा गया | जो  सिर्फ दस वर्षों के लिए था, इसके हालात की समीक्षा कर इसे ख़त्म किया जाना था यह निर्णय संविधान निर्माण समिति द्वारा लिया गया था | लेकिन यह दुर्भाग्य की बात है कि आने वाली सरकारों द्वारा हमेशा अवधि बढ़ाती जाती रही है और 66 वर्ष हो गये देश अभी भी आरक्षण के बेड़ियों में जकड़ा हुआ है | बाद में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए भी आरक्षण शुरू कर दिया गया |
आज तक किसी भी पार्टी ने या सरकार ने आरक्षण समाप्त करने का विचार तक नहीं किया, बल्कि समय के साथ इसे और ज्यादा बढ़ाया गया, आज आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक हो गयी, यही कारण हैं कि हर जाति हर वर्ग के लोग आरक्षण की मांग कर रहे हैं और आरक्षण के नाम पर आपस में ही विभाजन तथा विभेद पैदा हो रहा है | एक तरफ भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है तो दूसरी तरफ आरक्षण के नाम पर राजनीति करने वाले इसे बाँट रहे हैं | आरक्षण में खरगोश और कछुये की दौड़ वाला खेल खेला जा रहा है, प्रतिभा और हुनर का सीधे-सीधे शोषण हो रहा है, योग्यता को उचित स्थान नहीं मिल पा रहा है | आरक्षण के कारण 80 फीसदी अंक लेकर आने वाला प्रतियोगिता की दौड़ से हो बाहर हो जाता है और वहीं 30 फीसदी अंक लेकर शीर्ष स्थान प्राप्त कर लेता है, यही कारण है कि आज देश की जो उन्नति होनी थी नहीं हो पायी, देश को जिन ऊंचाईयों में होना था वहाँ नहीं है | आरक्षण किसी का रक्षण तो नहीं है परन्तु देश का भक्षण जरुर कर रहा है |
कुछ माह पूर्व गुजरात में राज्य का सबसे संपन्न पटेल-पाटीदार समाज ने आरक्षण की मांग को लेकर आन्दोलन किया है | गुजरात की कुल आबादी 6 करोड़ 27 लाख है, इसमें पटेल-पाटीदार लोगों की संख्या 20 प्रतिशत है | ये लोग खुद को ओबीसी कैटेगिरी में शामिल करना चाहते हैं, ताकि कालेजों और नौकरियों में कोटा मिल सके | राज्य में अभी ओबीसी रिजर्वेशन 27 प्रतिशत है, ओबीसी में 146 कम्युनिटी पहले ही लिस्टेड हैं, पटेल-पाटीदार समाज खुद को 146 वीं कम्युनिटी के रूप में ओबीसी की लिस्ट में शामिल होना चाहता है इसलिए यह समुदाय आरक्षण की मांग को लेकर आन्दोलन कर रहा था, जो बेहद हिंसात्मक रूप धारण कर चुका था, भयानक आग जनी, तोड़-फोड़ हुई, बहुत ज्यादा धन-जन की हानि हुई और अब हरियाणा में जाटों ने पूरे प्रदेश को आग में झोंक दिया । वैसे यह कोई नई बात नहीं है, देश पहले भी कई बार जातिगत आरक्षण की आग में जला है | ऐसे आन्दोलन पहले भी हुये हैं, जातिगत आरक्षण अगर बंद नहीं हुआ तो देश आगे भी ऐसे ही जलता रहेगा | आरक्षण किसी का रक्षण तो नहीं लेकिन देश का भक्षण जरुर कर रहा है |
आरक्षण से हमारा समाज कहाँ जा रहा है ? सोचो जरा, ये भीख मांगने का स्वाभाव नहीं तो और क्या है ? आरक्षण का ही दुष्परिणाम है कि 21 वीं सदी में भी लोगों की कितनी निम्न सोच है | जिस देश में लोगों में पिछड़ा बनने की होड़ लगी हो वो देश आगे कैसे बढ़ सकता है, इसलिए अगर देश को सुपरपावर बनाना है, तो आरक्षण को अविलम्ब बंद कर देना चाहिए | क्योंकि देश में जातिवाद की नहीं गरीबी की समस्या है, बेरोजगारी की समस्या है, जिस दिन देश से गरीबी समाप्त हो जाएगी लोगों को पर्याप्त रोजगार मिलने लगेंगे, तो आरक्षण की जरुरत ही नहीं पड़ेगी जातिवाद ही ख़त्म हो जायेगा | इसलिए सरकार को जातिगत आरक्षण देने की वजाये गरीबी दूर करने एवं रोजगार अवसर उपलब्ध कराने पर ज्यादा जोर देना चाहिए और सभी दलों को भी जाति-धर्म की राजनीति छोड़कर विकासवाद की राजनीती करनी चाहिए, जिससे देश में विकासवाद का माहोल बने |
स्वलिखित (कॉपी राइट)
सत्यम सिंह बघेल
केवलारी, सिवनी
मध्य प्रदेश

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