Thursday, February 18, 2016

कृषि कर्मण : किसानों के परिश्रम एवं शिवराज के जुनून का सुफल

मध्यप्रदेश लगातार पिछले तीन वर्षों से प्राकृतिक आपदाएं झेल रहा है जिससे कृषि उत्पादन में भारी कमी आई है। पिछला वर्ष 2015 तो किसानों एवं कृषि के लिए बेहद निराशाजनक एवं खराब रहा, पिछले वर्ष की दोनों ही फसलें पूरी तरह चौपट हो गई थीं। पहले ओला-अतिवृष्टि के चलते गेहूँ, चने की फसलें बर्बाद हो हुईं, इसके बाद बारिश की कमी और पीला मौजेक बीमारी के चलते सोयाबीन की फसल भी पूरी तरह चौपट हो गई, जिसका मुआवजा अभी तक वितरित किया जा रहा है। इसके बावजूद किसानों की मेहनत रंग लाई और मध्यप्रदेश को लगातार चौथी बार कृषि कर्मण अवार्ड के लिए चुना गया जो कि अदभुत, आश्चर्यजनक एवं राज्य के लिए गौरव की बात है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की कृषि क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने की सोच एवं लगन का परिणाम और अन्नदाता के अथक परिश्रम एवं भरपूर सहयोग के कारण ही प्रदेश को लगातार चौथी बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला। शिवराज सरकार खेती के क्षेत्र में लगातार नवाचारों का इस्तेमाल कर इसे लाभ का धंधा बनाने के लिए प्रयासरत है। वहीं, खेती में किसानों की और अधिक रूचि, उत्साहजनक भागीदारी एवं जागरूकता के चलते मध्यप्रदेश ने उन्नति के नए आयाम छू लिए हैं।
प्राकृतिक आपदाएं झेल रहे मध्यप्रदेश को इस बार श्रेष्ठ उत्पादन के लिए भारत सरकार द्वारा यह पुरस्कार दिया जा रहा है। वर्ष 2014-15 के लिए मिलने जा रहे कृषि कर्मण अवार्ड में श्रेष्ठ उत्पादन को बढ़ोतरी माना गया है। यानी 2.80 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर कृषि के सभी क्षेत्रों जैसे गेहूं, चना, दलहन, चावल आदि में 3.28 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हुआ है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 32.19 प्रतिशत अधिक है। प्रदेश ने कृषि से जुड़े हर क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन किया है यही कारण है कि कृषि, दलहन एवं खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में मप्र ने तमिलानाडु, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, हरियाणा एवं महाराष्ट्र को पीछे छोड़ दिया है तथा देश के खाद्यान्न उत्पादन में प्रदेश का योगदान 12.2 प्रतिशत हो गया है। अवार्ड के रूप में मप्र को 5 करोड़ की राशि तथा केंद्रीय कृषि मंत्रालय से प्रशंसा पत्र मिलेगा। मप्र अभी तक वर्ष 2011-12, वर्ष 2012-13, वर्ष 2013-14 में कृषि कर्मण अवार्ड ले चुका है। मध्यप्रदेश को वर्ष 2011-12 में पिछले 5 साल में अधिकतम उत्पादन के लिये । दूसरी बार पुन: खाद्यान्न उत्पादन श्रेणी में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए तथा तीसरी बार गेहूँ उत्पादन (174.78 लाख मीट्रिक टन) में देश में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये कृषि कर्मण अवार्ड मिला । कृषि के क्षेत्र में लगातार हो रहे उत्कृष्ट प्रदर्शन में दूरदृष्टा शिवराज सिंह चौहान का मध्यप्रदेश को देश-दुनिया का सबसे विकसित राज्य बनाने का लक्ष्य, कृषि को लाभ का धंधा बनाने हेतु सिंचाई क्षमता में बढ़ोत्तरी, बिजली की उपलब्धता, समय पर खाद-बीज का वितरण, भण्डारण क्षमता में बढ़ोत्तरी, ब्याज रहित कृषि ऋण, गेहूँ, धान और मक्के के उपार्जन पर बोनस जैसे कारणों का महत्वपूर्ण योगदान है।
किसान पुत्र मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पहले दिन से ही खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिये कमर कसी हुई है। किसानों और किसानी की दिक्कतों से रू-ब-रू और उन्हें दूर करने में किसानों की सलाह लेने के लिये उन्होंने किसान महापंचायत बुलाई। पंचायत में किसानों ने खुलकर अपनी बात कही और मुख्यमंत्री ने एक के बाद एक उनकी सलाहों पर अमल शुरू कर दिया। किसानों को बेहतर तकनीकों से वाकिफ करवाने के साथ-साथ उन्हें किसानी के अच्छे औजार भी मुहैया करवाये गये। प्रदेश के किसानों को नई तकनीक सीखने के लिये विदेशों में भी भेजा गया तथा किसानों को महँगे कृषि यंत्रों का फायदा दिलाने के लिये कस्टम हायरिंग सेन्टर योजना शुरू की गई है, साथ ही बेहतर तकनीक व्यवस्था देने के लिए कृषि यंत्रदूत योजना भी शुरू की गई ।
प्रदेश में कृषि के लिए 10 घंटे और घरों में चौबीस घंटे विद्युत आपूर्ति की व्यवस्था की गई। प्रदेश में एक दशक पहले विद्युत उपलब्धता 2900 मेगावॉट थी, जो बढ़कर अब 16 हजार 800 मेगावॉट हो चुकी है। नवकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय काम हुआ है। एशिया का सबसे बड़ा सोलर पॉवर प्लांट 130 मेगावॉट का प्रदेश के नीमच में लग चुका है और विश्व का सबसे बड़ा सोलर पॉवर प्लांट 750 मेगावॉट का रीवा में लगने जा रहा है। 10 वर्षों में प्रदेश की सिंचाई क्षमता साढ़े सात लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 36 लाख हेक्टेयर तक पहुँच चुकी है, अगर सिचाई व्यवस्था इसी गति से बढ़ती रही तो अगले पाँच वर्ष में 60 लाख हेक्टेयर तक पहुँच जाएगी।
इसके साथ ही अंतर्राष्ट्रीय संस्था नार्मन बोरलॉग, मेक्सिको के सहयोग से जबलपुर में स्थापित ‘सिमिट’ केन्द्र में मक्का पर अनुसंधान चल रहा है। जापान की संस्था ‘जायका’ प्रदेश के चुनिंदा जिलों में सोयाबीन पर अनुसंधान पर भागीदारी कर रही है। प्रदेश में विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है, इसके साथ ही प्रदेश में अब कृषि के दो विश्वविद्यालय हो गये हैं। छोटे और सीमांत किसानों के लिये खासतौर पर योजनाएँ बनाकर उन्हें लागू किया गया । मध्यप्रदेश की भंडारण क्षमता वर्ष 2010-11 में भंडारण क्षमता 79 लाख मीट्रिक टन थी, जो बढ़कर वर्ष 2014-15 में बढ़कर 158 लाख मीट्रिक टन हो गई जो देश के सभी प्रदेशों से सर्वाधिक है। उवर्रक के लिए अग्रिम भण्डारण की व्यवस्था की गई, उवर्रक सीधे आयात कर किसानों को उपलब्ध करवाये गये। खेती-बाड़ी से जुड़े क्षेत्रों के बीच बेहतर तालमेल के लिये कृषि केबिनेट बनाई गई जिसके फैसले केबिनेट के फैसले माने जाते हैं।
खेती में नवाचारी पद्धतियों का उपयोग बढ़ाते हुए मेडागास्कर पद्धति से धान की खेती का क्षेत्र बढ़कर 5.48 लाख हेक्टर हो गया है। इसी पद्धति का उपयोग गेहूँ, मक्का, चना, सोयाबीन और सरसों के उत्पादन में भी किया गया है, प्रदेश के किसानों के लिये यह नई पहल है। जैविक खेती को बढ़ावा देते हुए 40 हजार गाँवों में बीज गुणवत्ता कार्यक्रम चलाया गया है। खेती में यंत्रों का उपयोग बढ़ाते हुए 200 गाँवों को यंत्रदूत गाँव बनाया गया है। इसके अलावा 16 जिलों के 32 विकास खंडों में जैविक खेती का कार्यक्रम बड़े पैमाने पर लिया गया है। खेती में नवाचारी प्रयासों के अंतर्गत दस शासकीय प्रक्षेत्र में जैविक बीज उत्पादन का कार्यक्रम चलाया जा रहा है, इसके परिणाम यह हैं कि निकट भविष्य में मध्यप्रदेश जैविक बीज उत्पादन में देश का अग्रणी प्रदेश बन जायेगा। मुख्यमंत्री खेत तीर्थ योजना में वर्ष 2014-15 में करीब 82 हजार किसान को लाभ मिला है और इसी प्रकार मुख्यमंत्री विदेश अध्ययन यात्रा योजना में वर्ष 2014-15 में 40 किसान जर्मनी, इटली, हॉलेण्ड गए थे। किसानों, कृषि के मैदानी अधिकारियों और विशेषज्ञों के बीच आपसी समन्वय और संवाद के लिए कृषि महोत्सव का आयोजन किया गया। किसानों की उत्साहजनक भागीदारी को देखते हुए अब हर साल विभिन्न विषयों पर केन्द्रित कृषि महोत्सव आयोजित करने की पहल की गई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रदेश में कृषि और कृषकों के हित में महत्वपूर्ण निर्णय लेकर उन पर मुस्तैदी से अमल किया गया है।
किसानों को दिए जाने वाले सहकारी बैंकों पर ऋण घटाकर जीरो प्रतिशत कर दिया गया। किसानों को आर्थिक सहायता देने के उद्देश्य से सहकारी बैंकों से उन्हें वर्ष 2014-15 में 13 हजार 598 करोड़ रूपये का लोन दिया गया। वर्ष 2010-11 में यह लोन राशि 5845 करोड़ रूपये थी, राज्य सरकार ने खेती के लिए पिछले पाँच वर्षों में 39 हजार 820 करोड़ रुपये ऋण के रूप उपलब्ध करवाया है, गेहूँ उत्पादन के लिये 34 हजार करोड़ बोनस के रूप में दिये गये। प्रदेश में अब तक 78.85 लाख किसानों के पास क्रेडिट कार्ड की सुविधा हो चुकी है, सिर्फ वर्ष 2014-15 में ही 13.36 लाख किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड उपलब्ध हुये।
मध्यप्रदेश में एक दशक पहले खेती-किसानी के पुश्तैनी काम से मुँह मोड़ते चले जा रहे किसान राज्य सरकार की पुरजोर कोशिशों के चलते अब फिर से पूरे जोश के साथ इस काम में जुटते जा रहे हैं। खेती को मुनाफे का धंधा बनाने के लिये की गई दो-तरफा कोशिशों से यह मुमकिन हुआ है। जहाँ एक ओर किसानों ने कृषि की ओर रूचि एवं जागरूकता में वृद्धि लाई, इससे आमदनी में कारगर इजाफा हुआ साथ ही किसान ने बीते कुछ वर्षों में नई-नई तकनीकों को अपनाना शुरू किया है, वहीं खेती से जुड़े राष्ट्रीय कार्यक्रमों को शिवराज सरकार ने पूरी शिद्दत के साथ अंजाम दिया है। अपनी उपलब्धियों के बूते मध्यप्रदेश ने दशकों से खेती-बाड़ी में देश में सबसे आगे रहने वाले पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान  की जिद जुनून, जज्बा और अथक प्रयास का ही परिणाम है कि आज मध्यप्रदेश विकास के मामले में देश का अग्रणी राज्य है, अनाज भण्डार लबालब हैं, प्रदेश खेती में देश का सिरमौर बना हुआ है, गेहूँ उत्पादन में भी प्रदेश देश भर में अग्रणी है, कुल अनाज उत्पादन में भी सबसे आगे है और यही कारण है कि प्रदेश की विकास दर लगातार सात वर्ष से दहाई अंक में है एवं कृषि विकास दर पिछले चार वर्षों से बीस प्रतिशत से अधिक है, जो विश्व में सर्वाधिक है। कृषि में सर्वश्रेष्ठ कार्य के लिए प्रदेश को लगातार चार वर्षों जो कृषि कर्मण पुरस्कार दिया जा रहा है वह शिवराज सरकार द्वारा कृषि की दिशा में किए जा रहे लगातार प्रतिबद्ध प्रयासों एवं किसानों के अथक परिश्रम का सुफल है ।

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