Monday, February 15, 2016

आत्महत्या पर जातिवाद अखंडता पर वार

भारतीय संस्कृति अपनी सभ्यता एवं एकता के दम पर 5000 वर्ष से अपना अस्तित्व बनाये हुये है, इसने सदैव असंतोष और मतभेद को स्वीकार किया है | हमारे देश में बहुत सी भाषाएं 1600 बोलियां और सात धर्म एक साथ अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। हमेशा से हमारे देश में सहिष्णुता होने के कारण ही अलग-अलग धर्म का जुड़ाव मजबूती से बना हुआ है । यही वजह है कि इतने वर्षों तक हमारे देश की संस्कृति एवं सभ्यता का अस्तित्व बना हुआ है | यहाँ कोटि-कोटि जनता के मन में भारती की भौगोलिक एकता का गहरा संस्कार है। हमारी संस्कृति विविधताओं को स्वीकार करती है किन्तु एकत्व की प्राप्ति उसकी निजी विशेषता है। हमारे देश की संस्कृति एवं सभ्यता इतनी मजबूत है कि यहाँ अनेक आक्रमण हुये व कई शासकों ने शासन किया इसके बाद भी हमारे देश ने विवधता में एकता की मिसाल कायम रखी | हमारा एक संविधान है जो अलग-अलग जाति-धर्म और भाषा-बोली को स्थान देता है | इसके बावजूद कुछ तथाकथित लोग अपने निजी स्वार्थ के चलते देश में विभिन्न जाति-धर्म को लेकर भेदभाव का कलंक थोपना चाहते हैं | भारत जैसा धर्मनिरपेक्ष देश दुनिया का कोई देश नही है, फिर भी आज अपने निजी स्वार्थ के चलते कुछ लोग अपनी निम्नस्तर की राजनीति को चमकाने के लिए एक युवा की आत्महत्या पर घडियाली आंसू बहा रहे हैं |
हैदराबाद विश्वविद्यालय के रिसर्च स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या पर जिस तरह देश के राजनैतिक दलों द्वारा स्वार्थहित की  राजनीति की जा रही है, बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है और देश की एकता के लिए घातक है । दादरी कांड में जिस तरह से धर्मवाद की हवा देकर देश में अस्थिरता का माहौल पैदा किया गया था, उसी तरह इस मौत को भी जातिगत रंग देकर समाज के बीच द्वेष पैदा कर आपस में लड़वाने का काम किया जा रहा है । बिना पूरे मामले को जाने समझे तमाम राजनैतिक दलों द्वारा जिस तरह इस मौत पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने का प्रयास किया गया, उससे इन राजनैतिक दलों के बारे में यही बात स्पष्ट होती है कि इनको लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ कर सिर्फ अपनी राजनीति चमकानी ही आती है, भले ही किसी की लाश पर भी राजनीति करना पड़े तो भी पीछे नही हटेंगे | रोहित मामले में विरोध का झंडा थामे लोग केवल और केवल राजनीति ही कर रहे हैं | आत्महत्या करने वाले छात्र रोहित वेमुला ने अपने आखिरी पत्र में अपनी निजी जिन्दगी की थकावट और बिगड़ी मानसिक स्थिति को आत्महत्या का जिम्मेदार ठहराया है | पत्र में कहीं भी उसने न तो किसी सरकार का जिक्र किया, न ही किसी दल को जिम्मेदार ठहराया और न ही किसी व्यक्ति विशेष को | जातिवाद तथा स्वार्थ की राजनीति करने वाले राजनैतिक दलों को एक होनहार युवा की आत्महत्या में कहां से दलित उत्पीडऩ नजर आने लगा, यह तो वही बता सकते हैं लेकिन जिस तरह मौत को दलित अगड़े तथा पिछड़ो में बांटकर राजनीति की जा रही है वह देश की एकता के लिए खतरनाक है |
कोई व्यक्ति जब अपनी निजी जिन्दगी से मायूस हो जाता है तब वह किसी न किसी कारण से आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाता है |  इसी कमी के चलते देशभर में न जानें कितने लोग अपनी निजी जिन्दगी से मायूस होकर अपने जीवन को समाप्त कर देते हैं | आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में एक साल में लगभग 1 लाख से अधिक लोग आत्महत्या करते हैं, एक सरकारी रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले एक दशक में आत्महत्या की घटनाओं में 21.6 फीसदी का इजाफा हुआ है | वर्ष 2003 में जहां एक लाख 10 हजार 851 लोगों ने आत्महत्या की थी, वहीं 2013 में आत्महत्या करने वालों की संख्या बढ़कर एक लाख 34 हजार 799 पहुंच गई और फिर वर्ष 2014 में यह संख्या बढ़कर 1 लाख 36 हजार 666 से अधिक हो गई, इस वर्ष इनमें 2403 छात्र थे, यानी हर महीने 200 से अधिक छात्र आत्महत्या करते हैं। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार इस एक साल में 5650 किसानों और 20 हजार से ज्यादा घरेलू महिलाओं ने खुदकुशी की है, वहीं 1995 और 2014 के बीच भारत में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या ने तीन लाख का आंकड़ा पार कर लिया। देश में हर 4 मिनट में कोई एक व्यक्ति अपनी जान दे देता है और ऐसा करने वाले तीन लोगों में से एक युवा होता है यानी देश में हर 12 मिनट में 30 वर्ष से कम आयु का एक युवा अपनी जान ले लेता है। एक युवा ने अपनी जिन्दगी से थककर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली तो दिशाहीन एवं स्वार्थ की राजनीति करने वाले नेता उसकी आत्महत्या पर राजनीति कर छाती पीटने लगे, देशभर की मीडिया सवाल खड़े करने लगी | लेकिन उनका क्या जो लाखों लोग आत्महत्या करते हैं, क्या वे इंसान नही है, क्या वे नागरिक नहीं है | जरा गौर करें आत्महत्या की इन तमाम खबरों को अगर रोहित जितना ही कवरेज मिलता तो भारत आज एक आत्महत्या प्रधान देश बन जाता। ये सभी आत्महत्याएं क्या कम हैं या सिर्फ छोटी-मोटी घटनायें हैं, जो कि इन जातिवाद के नाम पर देश को बाटने वाले नेताओं को यह सब होते हुये भी इतने वर्षों से नजर नहीं आया, और अब क्या हुआ कि अचानक देश में रोहित की खुदकुशी पर जातिवाद नजर आने लगा | देश में हर वर्ष लाखों लोग आत्महत्या कर रहें हैं, तो फिर जातिवाद और अगड़े-पिछड़े के नाम आवाज बुलंद करने वाले तथाकथित नेता इतने वर्षों से खामोश क्यों थे, उनकी संवेदनशीलता कहाँ थी, अचानक क्यों इनकी चेतना जागी | जातिवाद का हवाला देकर सरकार का विरोध करने वाले लोग खुद ही देश का माहौल ख़राब कर रहे हैं और देश का अपमान कर रहे हैं | जो लोग रोहित के मामले में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें केवल देश की सरकार को नीचा दिखाने की राजनीति करने में ही मजा आ रहा है | हमारा देश सर्व धर्म समभाव के सिद्धांत को अपनाता है और इसी पर आधारित है, लेकिन इस तरह के जातिवाद विरोध प्रदर्शन के चलते क्या हमारे देश में समभाव की कल्पना की जा सकती है। बिलकुल नहीं। जो लोग इस आत्महत्या पर जातिवाद को हवा दे रहे हैं, वे स्पष्ट रूप से  देश की अखंडता व एकता के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। जातिवाद के आधार पर देश विरोध बढ़ रहा है समाज जातिवाद के नाम पर बट रहा है, ऐसे मामले आग में घी डालने के समान हैं। यह देश के सुनहरे भविष्य और उन्नति के लिए घातक है ।

स्वलिखित (कॉपी राइट)
सत्यम सिंह बघेल

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.