भौतिक सुख-सुविधा पाने की होड़ और स्वालंबन बनने की ललक के कारण आज के समय में अक्सर परिवारों में बिखराव आ रहा है और इस कारण घरों में बच्चे उस प्यार से वंचित रह जाते हैं, जो प्यार उन्हें एक शांत वातावरण वाले परिवार में रहकर मिलना चाहिए, नही मिल पाता है । इसलिये बच्चे खुद को अकेला महसूस करने लगते हैं, उनमे तनाव एवम् अवसाद घर कर जाता है और फिर धीरे-धीरे उनके अंदर नकारात्मकता के भाव पैदा हो जाते हैं । अतः बचपन से ही तनाव एवम् अवसाद से ग्रसित बच्चों की आदत इस तरह नकारात्मकता से भर जाती है । ऐसे बच्चों का व्यवहार आगे चलकर इस तरह का बन जाता है कि उसे हर सही बात गलत लगने लगती हैं, ऐसे बच्चे हर बात पर अक्सर गलत फहमी के शिकार होते हैं । इसलिए यह आवश्यक है कि हम चाहे जैसे रहे जो भी करना चाहें लेकिन बच्चों को अनदेखा नही करना चाहिए । हमे बच्चों का ख्याल रखते हुए घर-परिवार का वातावरण शांत-सकारात्मक एवं संस्कारवान बनाकर रखना चाहिए ताकि बच्चे भी उसी वातावरण में ढल सकें, क्योंकि बच्चों को बचपन में जो संस्कार मिलते हैं, जिस वातावरण में वे रहते हैं वैसे ही उनके भाव होते हैं और आगे चलकर वही उनकी आदत होती है । क्योंकि बच्चों की बचपन में ही जो आदत बन जाती है उसे बाद में बदलना मुश्किल होता है , इसलिए बच्चों को अच्छे वातावरण में रखे, अच्छे संस्कार दें ।
स्वलिखित(कॉपी राइट)
लेखक - सत्यम सिंह बघेल
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