दिसंबर 2001 को जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादियों ने लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद पर हमला किया था। उस दिन उन आतंकवादियों ने 45 मिनट में संसद भवन को गोलियों से छलनी करके पूरे हिंदुस्तान को झकझोर दिया था । लोकतंत्र के इस मंदिर को गोलियों-बमों से थर्रा कर रख दिया था। आतंक के नापाक कदम उस दिन लोकतंत्र के मंदिर की दहलीज तक पहुंच गए थे, शायद उन आतंकवादियों की पूरे संसद भवन को नेस्तनाबूद करने की साजिद थी, लेकिन हमारे सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए उन आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। लोकतंत्र के इस मंदिर में कोई आंच न आए, इसलिए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी। सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी ही वीरता से सभी आतंकियों को मार गिराया। आतंकियों का सामना करते हुए दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड शहीद हुए। 16 जवान इस दौरान मुठभेड़ में घायल हुए थे । इसके बाद संसद पर हमले की साजिश रचने वाले अफजल गुरु को सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त 2005 को फांसी की सजा सुनाई, कोर्ट ने आदेश दिया था कि 20 अक्टूबर 2006 को अफजल गुरु को फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाए। तीन अक्टूबर 2006 को अफजल की पत्नी तब्बसुम ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल कर दी। राष्ट्रपति ने इस दया याचिका पर गृह मंत्रालय से राय मांगी। मंत्रालय ने इसे दिल्ली सरकार को भेज दिया जहां दिल्ली सरकार ने इसे खारिज करके गृह मंत्रालय को वापस भेजा । गृह मंत्रालय ने भी दया याचिका पर फैसला लेने में वक्त लगाया लेकिन मंत्रालय ने अपनी फाइल राष्ट्रपति के पास भेज दी । फांसी पर अंतिम फैसला देश के राष्ट्रपति को ही लेना था, अत: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफजल की दया याचिका खारिज कर दी और सरकार ने 2013 में उसे फांसी दे दिया । अफजल गुरु और अजमल कसाब को फांसी उस समय दी गई थी जब केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। कांग्रेस सरकार ने दोनों आतंकवादियों को रातों रात बिना किसी को बताये चुपचाप फांसी पर लटका दिया था। कांग्रेस सरकार को यकीन था कि बताकर फांसी देने के बाद भारत के लोग विरोध करने के लिए बाहर आ सकते हैं इसके बावजूद भी कांग्रेस सरकार ने फांसी दी। लेकिन आज वही कांग्रेस बदल गयी है, कांग्रेस की स्वस्वार्थ की राजनीति देखकर ऐसा लग रहा है कि अगर अजमल कसाब और अफजल गुरु को मोदी सरकार के समय में फांसी दी गयी होती और JNU में लोग फांसी का विरोध करते तो कांग्रेस भी उनका समर्थन करती और फांसी रुकवाने की हर संभव कोशिश करती। जिस कांग्रेस पार्टी ने अफजल गुरु को फांसी दी थी आज उसी पार्टी के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी अफजल गुरु को शहीद का दर्जा देने की मांग करने वालों का साथ दे रहे हैं। आज राहुल गाँधी भारत विरोधी नारे लगाने वालों का समर्थन करते हुए कह रहे हैं कि भारत में बोलने की आजादी है, भारत में विरोध करने की आजादी है और जो विरोध करने वालों की आवाज दबाना चाहता है वह राष्ट्र विरोधी हैं।
हमारे लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन पर हमला करने और उसे तबाह कने की सोच रखने वाले मास्टर माइंड आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाई जा रही थी, वो भी हमारे देश की राजधानी दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में और फिर उस कार्यक्रम में "इण्डिया गो बैक", "कश्मीर मांगे आजादी", "केरल मांगे आजादी", "कितने अफजल मारोगे हर घर से अफजल निकलेगा", "पाकिस्तान जिंदाबाद हिन्दुस्तान मुर्दाबाद", "कश्मीर की आजादी तक जंग चलेगी, भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी", "भारत तेरे टुकड़े होंगे", जैसे देश विरोधी नारे लगाये गये। जो कि ऐसे नारे देश के लिए बहुत घातक हैं । इस तरह के नारे लगाने का सीधा मतलब है, देश से घात करना, देश के खिलाफ जाना, देश विरोधी ताकतों को बढ़ावा देना । आतंकी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करने का मतलब हैं देश के लोकतंत्र का अपमान करना, देश का अपमान करना और देश की न्यायपालिका एवं राष्ट्रपति की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े कर देना, तथा उनके फैसले को ठेंगा दिखाना । लेकिन हमारे देश के कुछ राजनैतिक दल और उनके नेता अपनी निम्नस्तर की घटिया राजनीति के चलते इसे अभिव्यक्ति की आजादी बताकर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुये हैं । अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में देश विरोधी ताकतों का समर्थन करना और स्वार्थ की राजनीति करना देश के लिए बेहद शर्मनाक है । क्योंकि हिन्दुस्तान में रहने वाला कोई भी नागरिक ऐसे नारे लगाता है तो वह निश्चित ही देशद्रोही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर होने वाले इस देशद्रोही हरकत का समर्थन कुछ राजनीति दल, देश के संविधान और न्यायपालिका का मजाक बनाने से नही चूक रहें हैं । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मातृभूमि का अपमान किया गया लेकिन कुछ नेताओं को राष्ट्र से ज्यादा अपनी राजनीति महत्वपूर्ण लगती है । देश विरोधी नारा लगाना अभिव्यक्ति की आजादी नही बल्कि देश द्रोह है और देश द्रोह का कतई समर्थन नही किया जाना चाहिए ।
ऐसी देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले अड्डे के नाते जेएनयू पर अब इस देश के लोगों को और सरकार को सोचना होगा कि इससे कैसे सख्ती से निपटा जाए। क्योंकि दुनिया में कही भी ऐसी शैक्षणिक संस्था नही है जहाँ पर इतनी आजादी हो कि आप जिस राष्ट्र का अंग हैं उसी राष्ट्र के अंग भंग याकि सोलह टुकड़े करने के नारे लगाने का बौद्धिक विमर्श करें। जेएनयू के छात्रसंघ ने, वामपंथी छात्र संगठन ने, और देश के कुछ राजनैतिक दलों ने देश विरोधियों को जो मौका दिया है, जैसी उनकी हौसलाबुंलदी की है, जैसे उनके पक्ष में खड़े हुए, उनका समर्थन किया, ये समान रूप से उतने ही दोषी हैं जितने भारत के सोलह टुकड़े के नारे लगाने वाले हैं। नारे देश के टुकड़े चाहने की मंशा लिए हैं, जो कि बहुत ही गंभीर विषय है, बतौर साक्ष्य वीडियो मौजूद है। दोषी पूरा जेएनयू है, वहां की आबोहवा है, भारत के किसी विश्वविद्यालय, किसी कॉलेज में या किसी संस्थान में यदि शैक्षिक आजादी के नाम पर भारत को तोड़ने की सोच के परिवेश की हकीकत बनती है तो उसे बरदाश्त नहीं किया जा सकता। जेएनयू एंटी नेशनल एक्टिविटीज का अड्डा बन गया है, इन पर सख्त से सख्त कार्यवाही की जाये । ज्ञात हो कि भारत के बंटवारे की पटकथा अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में लिखी गई थी और वही नजारा जेएनयू में दिख रहा है ।
स्वलिखित (कॉपी राइट)
सत्यम सिंह बघेल
केवलारी, सिवनी
मध्य प्रदेश
हमारे लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद भवन पर हमला करने और उसे तबाह कने की सोच रखने वाले मास्टर माइंड आतंकी अफजल गुरु की बरसी मनाई जा रही थी, वो भी हमारे देश की राजधानी दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में और फिर उस कार्यक्रम में "इण्डिया गो बैक", "कश्मीर मांगे आजादी", "केरल मांगे आजादी", "कितने अफजल मारोगे हर घर से अफजल निकलेगा", "पाकिस्तान जिंदाबाद हिन्दुस्तान मुर्दाबाद", "कश्मीर की आजादी तक जंग चलेगी, भारत की बर्बादी तक जंग चलेगी", "भारत तेरे टुकड़े होंगे", जैसे देश विरोधी नारे लगाये गये। जो कि ऐसे नारे देश के लिए बहुत घातक हैं । इस तरह के नारे लगाने का सीधा मतलब है, देश से घात करना, देश के खिलाफ जाना, देश विरोधी ताकतों को बढ़ावा देना । आतंकी अफजल गुरु की फांसी का विरोध करने का मतलब हैं देश के लोकतंत्र का अपमान करना, देश का अपमान करना और देश की न्यायपालिका एवं राष्ट्रपति की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े कर देना, तथा उनके फैसले को ठेंगा दिखाना । लेकिन हमारे देश के कुछ राजनैतिक दल और उनके नेता अपनी निम्नस्तर की घटिया राजनीति के चलते इसे अभिव्यक्ति की आजादी बताकर अपनी राजनीति चमकाने में लगे हुये हैं । अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ में देश विरोधी ताकतों का समर्थन करना और स्वार्थ की राजनीति करना देश के लिए बेहद शर्मनाक है । क्योंकि हिन्दुस्तान में रहने वाला कोई भी नागरिक ऐसे नारे लगाता है तो वह निश्चित ही देशद्रोही है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर होने वाले इस देशद्रोही हरकत का समर्थन कुछ राजनीति दल, देश के संविधान और न्यायपालिका का मजाक बनाने से नही चूक रहें हैं । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर मातृभूमि का अपमान किया गया लेकिन कुछ नेताओं को राष्ट्र से ज्यादा अपनी राजनीति महत्वपूर्ण लगती है । देश विरोधी नारा लगाना अभिव्यक्ति की आजादी नही बल्कि देश द्रोह है और देश द्रोह का कतई समर्थन नही किया जाना चाहिए ।
ऐसी देश विरोधी गतिविधियों को अंजाम देने वाले अड्डे के नाते जेएनयू पर अब इस देश के लोगों को और सरकार को सोचना होगा कि इससे कैसे सख्ती से निपटा जाए। क्योंकि दुनिया में कही भी ऐसी शैक्षणिक संस्था नही है जहाँ पर इतनी आजादी हो कि आप जिस राष्ट्र का अंग हैं उसी राष्ट्र के अंग भंग याकि सोलह टुकड़े करने के नारे लगाने का बौद्धिक विमर्श करें। जेएनयू के छात्रसंघ ने, वामपंथी छात्र संगठन ने, और देश के कुछ राजनैतिक दलों ने देश विरोधियों को जो मौका दिया है, जैसी उनकी हौसलाबुंलदी की है, जैसे उनके पक्ष में खड़े हुए, उनका समर्थन किया, ये समान रूप से उतने ही दोषी हैं जितने भारत के सोलह टुकड़े के नारे लगाने वाले हैं। नारे देश के टुकड़े चाहने की मंशा लिए हैं, जो कि बहुत ही गंभीर विषय है, बतौर साक्ष्य वीडियो मौजूद है। दोषी पूरा जेएनयू है, वहां की आबोहवा है, भारत के किसी विश्वविद्यालय, किसी कॉलेज में या किसी संस्थान में यदि शैक्षिक आजादी के नाम पर भारत को तोड़ने की सोच के परिवेश की हकीकत बनती है तो उसे बरदाश्त नहीं किया जा सकता। जेएनयू एंटी नेशनल एक्टिविटीज का अड्डा बन गया है, इन पर सख्त से सख्त कार्यवाही की जाये । ज्ञात हो कि भारत के बंटवारे की पटकथा अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में लिखी गई थी और वही नजारा जेएनयू में दिख रहा है ।
स्वलिखित (कॉपी राइट)
सत्यम सिंह बघेल
केवलारी, सिवनी
मध्य प्रदेश
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