अहमदाबाद में स्मार्ट सिटीज को लेकर आयोजित एक कार्यक्रम में लोकसभा स्पीकर ने कहा था कि अम्बेडकर जी भी चाहते थे 10 साल के लिए ही आरक्षण दिया जाना चाहिए और इसके बाद समीक्षा की जानी चाहिए | पिछड़े लोगों को इस इस्तर तक लाना चाहिए लेकिन हमने कुछ नही किया यहाँ तक कि मै भी इसकी दोषी हूँ, हमने इस बारे में कभी ध्यान नही दिया कि इसकी समीक्षा की जानी चाहिए | लोकसभा अध्यक्ष के इस बयान से कुछ जातिवादी नेताओं में घबराहट पैदा हो गई जो जातिवाद और आरक्षण के नाम पर अपनी राजनीति की नैया पार कर रहें हैं, उन नेताओं ने लोकसभा स्पीकर को दलित विरोधी तक करार दे दिया, वे उनके इस बयान से इतने भयभीत हो गये | शायद उन्हें लगा कि हमारी नैया कहीं अब बीच मझधार में ही न रह जाए, क्योंकि उनके पास जातिवाद और आरक्षण के अलावा और कोई मुद्दा नही है | जातिवाद और आरक्षण का झंडा थामने वाले नेता दलितों एवं पिछड़ों के नाम पर सिर्फ और सिर्फ अपनी राजनीति ही चमकाने में लगे रहते हैं, इनका दलितों के उत्थान और उन्नति से कोई सरोकार नही रहता, क्योंकि इन नेताओं की उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे बड़े प्रदेशों में सरकार भी बनी, अगर इन्हें दलितों और पिछड़ों की इतनी ही फ़िक्र होती तो फिर इन राज्यों में सबसे अधिक दलित और पिछड़ों की ही हालत ख़राब नही होती है | ये वही नेता हैं जो किसी की आत्महत्या करने पर उसकी लाश के साथ राजनीति करने से भी नहीं चुकते |
जातिवादी नेता सिर्फ एक-दूसरे पर जाति-धर्म, ऊँच-नीच का आरोप-प्रत्यारोप लगाने में लगे हुए हैं, लेकिन ये लोग विकास के मुद्दे की बात नही कर सकते, जो वर्तमान समय की सबसे बड़ी प्राथमिकता है | देश आजाद हुए 68 वर्ष हो गये और हमारा देश आज भी गरीबी-बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, लेकिन हमारे देश के जातिवादी नेता इस तरह संवेदनशून्य हो चुके हैं कि शायद उन्हें देश की मुख्य समस्यायें दिखाई नहीं दे रहीं हैं | आज भी तोड़ो-फोड़ो और राज करो की राजनीति चल रही है, जाति-धर्म के नाम पर बाँटने की बात हो रही है, हमारे जन प्रतिनिधि आज भी आरक्षण का लालीपाप पकड़े चल रहे हैं | आखिर आरक्षण ने देश को क्या दिया, क्या मिला आरक्षण से ? आरक्षण केवल जाति-धर्म के नाम पर देश को बाँटने वाली बीमारी है, आरक्षण कुछ चापलूस नेताओं द्वारा चलाई जा रही एक ऐसी कला है, मानों जैसे एक हाथी को एक छोटी खूँटी में बाँधने के लिए बाध्य किया जा रहा है | इंसान के पास विचारने-सोचने की अद्वतीय शक्ति है, जिससे वह कोई भी महान रचनात्मक कार्य कर सकता है | लेकिन हमारे देश में आरक्षण की ऐसी मानसिक गुलामी फैली है कि जिसने व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता को बांध कर रख दिया है, छोटी सोच लेकर जीने पर मजबूर हैं | व्यक्ति के पास किसी महान लक्ष्य की प्रतियोगिता के लायक हिम्मत ही नहीं बचती, कुछ नया सोचने की उसकी शक्ति बांझ हो जाती है, आरक्षण की सुविधा जिसे मिल रही है वो अपनी बौद्धिकता खोने को मजबूर हैं | देश में जातिवाद आरक्षण के नाम की महामारी फैली हुई है, कभी कोई तो कभी कोई, हर किसी समुदाय को आरक्षण चाहिए | कभी कोई संपन्न समाज आन्दोलन कर रहा, कभी कोई समाज आरक्षण की मांग कर रहा है | आरक्षण किसी का रक्षण तो नहीं लेकिन देश का भक्षण जरुर कर रहा है |
वास्तविकता तो यह है कि जिन समुदायों को आरक्षण मिलता है, उनमे भी संपन्न लोग रहते हैं, जिन्हें आरक्षण की जरूरत ही नहीं है, उन्हें भी आरक्षण मिल रहा है और जिन समुदायों को आरक्षण नहीं मिलता उनमें भी ऐसे गरीब परिवार हैं जिन्हें आरक्षण की जरुरत है लेकिन वे इससे वंचित हैं, इसलिए जातिगत आरक्षण बंद होना चाहिए | जिनमें योग्यता है और उन्हें आरक्षण के कारण उचित स्थान नहीं मिल पा रहा है, उनके अधिकार का सीधा-सीधा हनन हो रहा है, उनकी प्रतिभा को दबाया जा रहा है, हुनर के परो को काटा जा रहा हैं | संविधान निर्माताओं द्वारा आरक्षण इसलिए लाया गया था ताकि पिछड़ों को आगे लाकर समाज में समानता लाई जा सके और यह भी निर्णय लिया गया था कि तय अवधि के बाद इसे समाप्त कर दिया जायेगा लेकिन इसे अभी भी समाप्त नहीं किया गया | समाप्त करने की बजाय इसे दिनों-दिन बढ़ाया गया और इस पर राजनीति होने लगी | पहले पढ़ाई में आरक्षण, फिर नौकरी में अब प्रमोशन में भी आरक्षण ये क्या तमाशा है | आरक्षण की व्यवस्था जिसके लिए की गई है, उसका ज्यादा भला तो नहीं हुआ, लेकिन हाँ जातिवाद फैलाकर उसकी नैया पर सवार होकर राजनीति की वैतरणी पार करने वालों को जरुर फायदा हुआ है | कुछ लोगों ने भैसों का चारा खा गये, तो कुछ ने पार्कों में अपनी मूर्तियाँ सजवा लिया | देश में जो भी निम्नस्तर की राजनीति हुई, जितने भी निम्नस्तर के नेता पैदा हुए इसी जातिगत आरक्षण के नाम पर टिके रहे | अगर जातिगत आरक्षण बंद हो जाये तो इस पर राजनीति कर देश को बाँटने वाले नेताओं की दुकाने भी बंद हो जायेंगी |
राजनितिक तानाशाही के चलते संविधान में संशोधन करके आरक्षण को निरन्तर बढ़ाया जा रहा है | भीमराव अंबेडकर और राममनोहर लोहिया जैसे राजनीतिक नेता और चिंतकों ने जाति पर आधारित आरक्षण को जातिव्यवस्था समाप्त करने के लिए इस्तेमाल करना चाहा था, उसे मजबूत करने के लिए नहीं, डॉ भीमराव अंबेडकर की तो एक पुस्तक का शीर्षक ही "जाति का संहार" है | लेकिन स्वतंत्रता के बाद का इतिहास बताता है कि पिछले छ: दशकों में जाति व्यवस्था टूटने के बजाय और अधिक मजबूत होती गई, और आरक्षण दिनों दिन बढ़ते ही जा रहा है, और इसकी मांग भी बढ़ते ही जा रही है आज देश की यह गंभीर समस्या बन चुकी है कि हर समुदाय हर धर्म को आज आरक्षण चाहिए, देश जातिगत आरक्षण के नाम पर बटते जा रहा है | संपन्न से संपन्न समाज को भी आज आरक्षण चाहिए | आरक्षण से हमारा समाज कहाँ जा रहा है ? सोचो जरा, ये भीख मांगने का स्वाभाव नहीं तो और क्या है ? आरक्षण का ही दुष्परिणाम है कि 21 वीं सदी में भी लोगों की कितनी निम्न सोच है | जिस देश में लोगों में पिछड़ा बनने की होड़ लगी हो वो देश आगे कैसे बढ़ सकता है, इसलिए अगर देश को सुपरपावर बनाना है, तो आरक्षण को अविलम्ब बंद कर देना चाहिए | क्योंकि देश में जातिवाद की नहीं गरीबी की समस्या है, बेरोजगारी की समस्या है, जिस दिन देश से गरीबी समाप्त हो जाएगी लोगों को पर्याप्त रोजगार मिलने लगेंगे, तो आरक्षण की जरुरत ही नहीं पड़ेगी जातिवाद ही ख़त्म हो जायेगा | इसलिए सरकार एवं सभी राजनैतिक दलों को जातिगत आरक्षण का समर्थन करने की बजाये गरीबी दूर करने एवं रोजगार अवसर उपलब्ध कराने पर ज्यादा जोर देना चाहिए और सभी दलों को भी जाति-धर्म की राजनीति छोड़कर विकासवाद की राजनीती करनी चाहिए अगर लड़ना है तो गरीबी से लड़ें, बेरोजगारी से लड़ें और देश में विकासवाद का माहोल स्थापित करें |
जातिवादी नेता सिर्फ एक-दूसरे पर जाति-धर्म, ऊँच-नीच का आरोप-प्रत्यारोप लगाने में लगे हुए हैं, लेकिन ये लोग विकास के मुद्दे की बात नही कर सकते, जो वर्तमान समय की सबसे बड़ी प्राथमिकता है | देश आजाद हुए 68 वर्ष हो गये और हमारा देश आज भी गरीबी-बेरोजगारी जैसी गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है, लेकिन हमारे देश के जातिवादी नेता इस तरह संवेदनशून्य हो चुके हैं कि शायद उन्हें देश की मुख्य समस्यायें दिखाई नहीं दे रहीं हैं | आज भी तोड़ो-फोड़ो और राज करो की राजनीति चल रही है, जाति-धर्म के नाम पर बाँटने की बात हो रही है, हमारे जन प्रतिनिधि आज भी आरक्षण का लालीपाप पकड़े चल रहे हैं | आखिर आरक्षण ने देश को क्या दिया, क्या मिला आरक्षण से ? आरक्षण केवल जाति-धर्म के नाम पर देश को बाँटने वाली बीमारी है, आरक्षण कुछ चापलूस नेताओं द्वारा चलाई जा रही एक ऐसी कला है, मानों जैसे एक हाथी को एक छोटी खूँटी में बाँधने के लिए बाध्य किया जा रहा है | इंसान के पास विचारने-सोचने की अद्वतीय शक्ति है, जिससे वह कोई भी महान रचनात्मक कार्य कर सकता है | लेकिन हमारे देश में आरक्षण की ऐसी मानसिक गुलामी फैली है कि जिसने व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता को बांध कर रख दिया है, छोटी सोच लेकर जीने पर मजबूर हैं | व्यक्ति के पास किसी महान लक्ष्य की प्रतियोगिता के लायक हिम्मत ही नहीं बचती, कुछ नया सोचने की उसकी शक्ति बांझ हो जाती है, आरक्षण की सुविधा जिसे मिल रही है वो अपनी बौद्धिकता खोने को मजबूर हैं | देश में जातिवाद आरक्षण के नाम की महामारी फैली हुई है, कभी कोई तो कभी कोई, हर किसी समुदाय को आरक्षण चाहिए | कभी कोई संपन्न समाज आन्दोलन कर रहा, कभी कोई समाज आरक्षण की मांग कर रहा है | आरक्षण किसी का रक्षण तो नहीं लेकिन देश का भक्षण जरुर कर रहा है |
वास्तविकता तो यह है कि जिन समुदायों को आरक्षण मिलता है, उनमे भी संपन्न लोग रहते हैं, जिन्हें आरक्षण की जरूरत ही नहीं है, उन्हें भी आरक्षण मिल रहा है और जिन समुदायों को आरक्षण नहीं मिलता उनमें भी ऐसे गरीब परिवार हैं जिन्हें आरक्षण की जरुरत है लेकिन वे इससे वंचित हैं, इसलिए जातिगत आरक्षण बंद होना चाहिए | जिनमें योग्यता है और उन्हें आरक्षण के कारण उचित स्थान नहीं मिल पा रहा है, उनके अधिकार का सीधा-सीधा हनन हो रहा है, उनकी प्रतिभा को दबाया जा रहा है, हुनर के परो को काटा जा रहा हैं | संविधान निर्माताओं द्वारा आरक्षण इसलिए लाया गया था ताकि पिछड़ों को आगे लाकर समाज में समानता लाई जा सके और यह भी निर्णय लिया गया था कि तय अवधि के बाद इसे समाप्त कर दिया जायेगा लेकिन इसे अभी भी समाप्त नहीं किया गया | समाप्त करने की बजाय इसे दिनों-दिन बढ़ाया गया और इस पर राजनीति होने लगी | पहले पढ़ाई में आरक्षण, फिर नौकरी में अब प्रमोशन में भी आरक्षण ये क्या तमाशा है | आरक्षण की व्यवस्था जिसके लिए की गई है, उसका ज्यादा भला तो नहीं हुआ, लेकिन हाँ जातिवाद फैलाकर उसकी नैया पर सवार होकर राजनीति की वैतरणी पार करने वालों को जरुर फायदा हुआ है | कुछ लोगों ने भैसों का चारा खा गये, तो कुछ ने पार्कों में अपनी मूर्तियाँ सजवा लिया | देश में जो भी निम्नस्तर की राजनीति हुई, जितने भी निम्नस्तर के नेता पैदा हुए इसी जातिगत आरक्षण के नाम पर टिके रहे | अगर जातिगत आरक्षण बंद हो जाये तो इस पर राजनीति कर देश को बाँटने वाले नेताओं की दुकाने भी बंद हो जायेंगी |
राजनितिक तानाशाही के चलते संविधान में संशोधन करके आरक्षण को निरन्तर बढ़ाया जा रहा है | भीमराव अंबेडकर और राममनोहर लोहिया जैसे राजनीतिक नेता और चिंतकों ने जाति पर आधारित आरक्षण को जातिव्यवस्था समाप्त करने के लिए इस्तेमाल करना चाहा था, उसे मजबूत करने के लिए नहीं, डॉ भीमराव अंबेडकर की तो एक पुस्तक का शीर्षक ही "जाति का संहार" है | लेकिन स्वतंत्रता के बाद का इतिहास बताता है कि पिछले छ: दशकों में जाति व्यवस्था टूटने के बजाय और अधिक मजबूत होती गई, और आरक्षण दिनों दिन बढ़ते ही जा रहा है, और इसकी मांग भी बढ़ते ही जा रही है आज देश की यह गंभीर समस्या बन चुकी है कि हर समुदाय हर धर्म को आज आरक्षण चाहिए, देश जातिगत आरक्षण के नाम पर बटते जा रहा है | संपन्न से संपन्न समाज को भी आज आरक्षण चाहिए | आरक्षण से हमारा समाज कहाँ जा रहा है ? सोचो जरा, ये भीख मांगने का स्वाभाव नहीं तो और क्या है ? आरक्षण का ही दुष्परिणाम है कि 21 वीं सदी में भी लोगों की कितनी निम्न सोच है | जिस देश में लोगों में पिछड़ा बनने की होड़ लगी हो वो देश आगे कैसे बढ़ सकता है, इसलिए अगर देश को सुपरपावर बनाना है, तो आरक्षण को अविलम्ब बंद कर देना चाहिए | क्योंकि देश में जातिवाद की नहीं गरीबी की समस्या है, बेरोजगारी की समस्या है, जिस दिन देश से गरीबी समाप्त हो जाएगी लोगों को पर्याप्त रोजगार मिलने लगेंगे, तो आरक्षण की जरुरत ही नहीं पड़ेगी जातिवाद ही ख़त्म हो जायेगा | इसलिए सरकार एवं सभी राजनैतिक दलों को जातिगत आरक्षण का समर्थन करने की बजाये गरीबी दूर करने एवं रोजगार अवसर उपलब्ध कराने पर ज्यादा जोर देना चाहिए और सभी दलों को भी जाति-धर्म की राजनीति छोड़कर विकासवाद की राजनीती करनी चाहिए अगर लड़ना है तो गरीबी से लड़ें, बेरोजगारी से लड़ें और देश में विकासवाद का माहोल स्थापित करें |
स्वलिखित(कॉपी राइट)
सत्यम सिंह बघेल
केवलारी, सिवनी (मप्र)
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