Wednesday, February 17, 2016

बलात्कार की घटनाओं पर समाज क्यों है मौन

वर्तमान समय में हमारे देश में बलात्कार जैसी अमानवीय दुर्घटनाओं ने समाज को झकझोर कर रख दिया है, आदर्शों व महान नैतिक मूल्यों की संस्कृति की नींव पर विकसित हुए इस राष्ट्र में बलात्कार की घटनायें मुख्य चुनौती बन चुकी हैं अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मुख्यमंत्री निवास के निकट एक छात्रा का बलात्कार करने के बाद उसे मौत के घाट उतार दिया गया, यही नही उस मृत छात्रा के साथ फिर अन्य नरपिशाच द्वारा बलात्कार किया गया कितनी शर्मनाक बात है | यह सब पढ़कर और आज लिखते हुए मेरी आँखों में आंसू आ गये लेकिन उन दरिन्दों ने कितनी क्रूरता वर्ती उन्हें जरा भी दया न आई, उन माता पिता पर और उस मासूम पर भी जिसे हमारे देश में देवी मानकर उपासना की जाती है | शैतानी क्रूरता की शिकार नारी की विवशता हर दिन समाचार पत्र, न्यूज चैनल के माध्यम से देखने, पढ़ने, सुनने को मिल रही हैं, जो देश की कानून व्यवस्था और सभ्य समाज की मुकबधिरता पर सवालिया निशान खड़ा कर रहीं हैं | जब यही अतिअमानवीय घटना दिल्ली में घटी थी तब उस घटना के बाद से राक्षसी मानसिकता एवं व्यवस्था के विरुद्ध उठने वाले देशव्यापी आक्रोश ने जिस प्रकार पहल की थी, उससे लग रहा था कि यह व्यापक जनाक्रोश निःसन्देह ही मौकापरस्त व ढर्रावादी राजनीति के लिए एक चुनौती तथा व्यवस्था के लिए एक शुभ संकेत है | पहली बार बलात्कार की घटनाओं के खिलाफ एक आन्दोलन का रूप लिया था व सम्पूर्ण सामाजिक विभीषिका पर एक राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ी थी | आन्दोलन की व्यापकता देखकर यही कहा जा सकता था कि वर्षों से मौन भारतीय समाज अब जाग चुका है, बदलाव की बहार चल पड़ी है, देश में हमारे सभ्य समाज को कलंकित करने वाली जो अमानवीय घटनायें घट रहीं हैं उनमे बेशक अंकुश लगेगा, उन बदन पिपासुओं के खिलाफ अवश्य कठोर कानून बनेगा | उस समय उस पीड़ाप्रद व निराशाजनक वातावरण में यही थोड़ा सन्तोषप्रद था और उसी आधार पर अधिकतर बुद्धिजीवियों ने उस आन्दोलन को नई पीढ़ी की नेतृत्वहीन क्रान्ति के रूप में परिभाषित करते हुए एक नए दौर की निश्चित भविष्यवाणी तक कर डाली थी |
लेकिन उस समय किसी को क्या मालूम था कि यह आन्दोलन तो सिर्फ एक हवा के झोखे जैसा है, जो चंद समय के लिए मौका परस्ती के चलते उग्र हुआ है, कुछ दिन बाद फिर से वही होगा जो पहले से चला आ रहा है और हुआ भी वही कुछ दिन बाद आन्दोलन शांत | साथ ही सब कुछ जैसा की तैसा न ही उन बदन पिपासुओं के लिए कठोर दंड का प्रावधान बना न ही बलात्कार की घटनाओं में कोई कमी हुई | बल्कि इसके विपरीत देश में बलात्कार जैसी अतिअमानवीय दुर्घटनाओं में वृद्धि हुई है | रूह काँप उठती है इन क्रूर दुर्घटनाओं के बारे में सुनकर-पढ़कर, आज हालत ऐसे बन चुके हैं कि अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले कुछ सालों में बलात्कार की घटनाओं में लगातार निरशाजनक इजाफा देखने को मिला है | इस बावत अगर राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के द्वारा जारी किये गए आंकड़ों पर नजर डाली जाये तो भारत में प्रतिदिन 60 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटानाओं को अंजाम दिये जाने की बात सामने आती है | हम देखें तो आज नैतिक मूल्यों को खोते हुए भारत में बलात्कार सबसे तेजी से बढ़ता अपराध है जिसमें आकड़ों से स्पष्ट होता है कि जहाँ 1971 में 2487 बलात्कार की घटनायें घटी वहीं 2011 में ये अमानवीय घटनायें बढ़कर 24206 हुई इस तरह 873.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वही एक अन्य आंकड़े में ऐसा बताया गया है कि भारत में बलात्कार के ग्राफ में 30 प्रतिशत की रफ़्तार से प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है जो कि देश की अस्मिता को शर्मसार करने वाला आंकड़ा है | सन 2010 की अपेक्षा सन 2011 में लगभग बलात्कार के दो हजार मामले ज्यादा सामने आये और उसके बाद एक अनुमान के मुताबिक़ सन 2012, 2013, 2014 में भी इसी अनुपात में बलात्कार की अमानवीय दुर्घटनाओं में इजाफा हुआ है | आदर्शों व महान नैतिक मूल्यों की संस्कृति की नींव पर विकसित हुए इस राष्ट्र में आज प्रत्येक 22वें मिनट किसी भेड़िये द्वारा एक विवश नारी की अस्मिता को तार तार किया जाता है, ये तो वो आकडे हैं जो पीड़ित द्वारा पुलिस में शिकायत की जाती है, सोचिए ये आंकड़े इससे भी कही ज्यादा होंगे क्योंकि अभी भी 80% स्त्रियाँ लोकलाज, गरीब, असहाय या अशिक्षित होने के कारण थाने तक पहुँच ही नहीं पाती हैं। और हमारे देश की कानून व्यवस्था और हमारा सभ्य समाज क्यों इस तरह मौन साधे सिर्फ तमाशा देखने में मग्न है ?
नित्य प्रति हो रही क्रूरता की हर सीमा को लांघने देने वाली कुकृत्य दुर्घटनाओं से आधी दुनिया के नाम से जानी जाने वाली महिलायें आज घरों सड़कों पर खुद को सुरक्षित नहीं महसूस कर पा रहीं हैं | देश में यही स्थिति रही तो आने वाले समय में महिलाओं की स्थिति क्या होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है | वर्तमान समय में निरंतर हो रही बलात्कार की घटनाओं की वृद्धि ने सिर्फ हमारी सुरक्षा व्यवस्था ही नहीं बल्कि तमाम सामाजिक पहलुओं को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है | देश में जिस तरह से महिलाओं एवं लड़कियों के साथ छेड़-छाड़ और बलात्कार के सिलसिलेवार मामले एक के बाद एक सुर्ख़ियों में आ रहे हैं, सभी ने क़ानून व्यवस्था के साथ-साथ इस बात पर सवाल उठाये हैं कि आखिर हमारा भारत किस संस्कृति की तरफ जा रहा है ? क्या हम इतने अंधे हो चुके हैं कि सामाजिक संवेदनाए हमारे लिए मायने नहीं रखती या कहीं ना कहीं कोई ऐसा कारक है जो समाज की वर्तमान पीढ़ी को दिग्भ्रमित कर रहा है | निश्चित तौर पर इसके आंकड़ों में तेजी से जो वृद्धि हुई है, वे देश में महिलाओं की स्थिति एवं उनके प्रति असंवेदनशील होते समाज एवं लचर प्रशासनिक व्यवस्था को दिखाने के लिए पर्याप्त हैं |
आज तेजी से बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं को समाज के मुख्य धारा का विषय मानकर इसे पूर्ण रूप से रोकने के लिए  हर संभव प्रयास किये जाने की आवश्यकता है, इसके लिए भारतीय समाज के हर घटक को एक साथ संगठित होकर इसके खिलाफ मजबूती से खड़े होने की आवश्यकता है, महिलाओं की अस्मिता एवं समाज के लिए कलंक बन चुकी इस हैवानियत के विरुद्ध शासन, प्रशासन, समाज, कानून सबको एक साथ सजग होने की जरुरत है ना कि सब अपनी ढपली अपना राग बजाएं | साथ ही तेजी से बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं के खिलाफ कठोर से कठोर कानून बनाने की आवश्यकता है, आरोपी को जेल तक की सजा देने से मामला बनता नहीं दिख रहा तो उन दंड नीतियों पर भी अमल किया जाना चाहिए जिससे बलात्कारी के अंदर सामाजिक प्रायश्चित एवं ग्लानि का भाव उत्पन्न हो और वो समाज के सामने अपने किये पर प्रायश्चित करे, साथ ही रासायनिक पदार्थों के प्रयोग से बलात्कारी को नपुंसकता की स्थिति में लाने की प्रक्रिया को दंड प्रावधान में शामिल किया जाना चाहिए |
स्वलिखित(कॉपी राइट)
सत्यम सिंह बघेल
केवलारी, सिवनी, मप्र

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