Tuesday, February 23, 2016

नारी शक्ति की लुटती अस्मिता : सभ्य समाज मौन

वर्तमान समय में हमारे देश में निरंतर बढ़ती बलात्कार की घटनायें आज समाज के लिए मुख्य रूप से चुनौती का विषय बन चुकी हैं, बलात्कार की निंदनीय घटनाओं पर पिछले कुछ बर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो आंकड़ों में बहुत ही निराशाजनक वृद्धि हुई है, जिसने ना सिर्फ हमारी सुरक्षा व्यवस्था बल्कि तमाम सामाजिक पहलुओं को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है | जिस नारी शक्ति को हमारे देश में देवी मानकर उसकी उपासना की जाती है, राक्षशी क्रूरता से भरे दरिन्दे उसी नारी शक्ति की अस्मिता को तार तार कर रहें हैं और हमारा सभ्य समाज सबकुछ मौन होकर देख रहा है | वर्तमान माहौल में मीडिया द्वारा इन घटनाओं को अपेक्षाकृत अधिक कवरेज तो मिलता है किन्तु फिर भी इन घटनाओं की मृत अथवा जीवित पीड़ितायेँ किसी भी सहायता व सहानुभूति से वंचित ही रह जाती हैं, देश के किसी भी शहरों में  हो या जहां भी घटनाएँ हुईं, पीड़ित लड़कियों की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ते नहीं दिखते | सभ्य कहे जाने वाले इस संस्कारित समाज में कुकृत्यता के खिलाफ आवाज उठना तो दूर की बात है यहाँ तो पड़ोसी भी पीड़ित परिवार के साथ पुलिस स्टेशन तक जाने की सहानुभूति नहीं दिखाता, क्या यह स्वार्थ के दीमक से संक्रमित हमारी कमजोर मानवता के खोखलेपन को नहीं उघेड़ता? क्या ऐसे में भारत को सभ्य कहा जा सकता है? आदर्शों व महान नैतिक मूल्यों की संस्कृति की नींव पर विकसित हुए इस राष्ट्र में आज प्रत्येक 22वें मिनट किसी भेड़िये द्वारा एक विवश नारी की अस्मिता को तार तार किया जाता है | भारत में प्रतिदिन 60 महिलाओं के साथ बलात्कार की घटानाओं को अंजाम दिये जाने की बात सामने आती है | हम देखें तो आज नैतिक मूल्यों को खोते हुए भारत में बलात्कार सबसे तेजी से बढ़ता अपराध है जिसमें आकड़ों से स्पष्ट होता है कि जहाँ 1971 में 2487 बलात्कार की घटनायें घटी वहीं 2011 में ये अमानवीय  घटनायें बढ़कर 24206 हुई इस तरह 873.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वही एक अन्य आंकड़े में ऐसा बताया गया है कि भारत में बलात्कार के ग्राफ में 30 प्रतिशत की रफ़्तार से प्रतिवर्ष वृद्धि हो रही है जो कि देश की अस्मिता को शर्मसार करने वाला आंकड़ा है | सन 2010 की अपेक्षा सन 2011 में लगभग बलात्कार के दो हजार मामले ज्यादा सामने आये और उसके बाद एक अनुमान के मुताबिक़ सन 2012, 2013, 2014 में भी इसी अनुपात में बलात्कार की अमानवीय दुर्घटनाओं में इजाफा हुआ है |ये तो वो आकडे हैं जो पीड़ित द्वारा पुलिस में शिकायत की जाती है, सोचिए ये आंकड़े इससे भी कही ज्यादा होंगे क्योंकि अभी भी 80% स्त्रियाँ लोकलाज, गरीब, असहाय या अशिक्षित होने के कारण थाने तक पहुँच ही नहीं पाती हैं। हम देखें तो आज नैतिक मूल्यों को खोते हुए भारत में बलात्कार सबसे तेजी से बढ़ता अपराध है जिसमें आकड़ों से स्पष्ट होता है कि जहाँ 1971 में 2487 बलात्कार की घटनायें घटी वहीं 2011 में ये अमानवीय घटनायें बढ़कर 24206 हुई इस तरह 873.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
हर दिन अखबार, समाचार चैनल के माध्यम से सुनने-देखने को मिल रहा है कि आज यहाँ दरिन्दों ने नाबालिग की अस्मत लूटी कल वहां हैवानियत हुई, नित्य प्रति दिन दिल को दहला देनी वाली बलात्कार की घटनायें एवं निडर घूम रहे इन बदन पिपाशुओं पर नियंत्रण कैसे पाया जाये, ये सवाल आज भी ना सिर्फ प्रशासन बल्कि समूचे समाज के लिए चुनौती बना हुआ है | फिर हमारा समाज बलात्कार के खिलाफ आवाज उठाने की बजाए उस विवश पीड़िता को तमाशा बनाकर रख देता है, बड़े दुर्भाग्य की बात है कि वे दरिन्दे जो हैवानियत की सारी सीमा को पार कर जाते हैं, वे हमारे समाज में सिर उठाकर शान से जीते हैं और उसी सभ्यता से भरे संस्कारित समाज में एक विवश पीड़िता अपनी जिन्दगी ख़त्म करने पर मजबूर हो जाती है, दोयम दर्जे का व्यवहार करने वाला हमारा समाज उसे घ्रणा भरी निगाहों से देखने लगता है, उसे सामाजिक रूप से नकारा जाता है, उसे कदम-कदम पर ताना दिया जाता है, उसे जीने लायक नहीं छोड़ा जाता, कितनी शर्मिंदगी भरी बात है, बहुत दुःख होता है ये सब देखकर-सुनकर | कुछ माह पूर्व एक प्रमुख दल के मुखिया ने अपने बयान में कहा था चार लोग मिलकर एक लड़की का बलात्कार नहीं कर सकते, आखिर कैसे हमारे एक जन प्रतिनिधि इतना घटिया बयान दे सकते हैं, क्या उन्होंने नहीं सुना है, देश में कितने निंदनीय और दर्दनाक बलात्कार की दुर्घटनाएं हो रही हैं, एक उच्चपद में आसीन व्यक्ति जब ऐसे घटिया बयान देगा तो स्वाभाविक है समाज में बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं पर अंकुश लगने की बजाए विकृत मानसिकता को और ज्यादा बल मिलेगा | वहीँ समाज बलात्कार की घटनाओं को लेकर प्रायः दो प्रकार के वैचारिक वर्ग सक्रिय हो जाते हैं- एक तो वे जो महिलाओं पर ही अंकुश लगाने की बात करते हैं और दूसरे वे जो आधुनिकता की आड़ में हर घटना का ठीकरा भारतीय सामाजिक संरचना पर फोड़ने का प्रयास करते हुए पश्चिम के और अधिक उन्मुक्त अनुसरण की वकालत शुरू कर देते हैं । कुछ लोग महिलाओं के छोटे कपड़े पहने को बलात्कार की वजह बताने लगते हैं तो कुछ लोग देर रात तक लड़की के बाहर रहने की वजह बताने लगते हैं और ऐसे ही कई तरह से अपने अपने वक्तव्य देने लगते हैं, लेकिन उस घटना को हम किस तरह परिभाषित करेंगे जब एक पिता द्वारा अपनी ही बेटी का शोषण किया जाता है या फिर एक 4 वर्ष 5 वर्ष की नाबालिक को इस दरिंदगी का शिकार बनाया जाता है | बलात्कार छोटे कपड़ों या महिलाओं की आजादी के कारण नहीं बल्कि विकृत मानसिकता का परिणाम है |
आज तेजी से बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं को समाज के मुख्य धारा का विषय मानकर इसे पूर्ण रूप से रोकने के लिए  हर संभव प्रयास किये जाने की आवश्यकता है, इसके लिए भारतीय समाज के हर घटक को एक साथ संगठित होकर इसके खिलाफ मजबूती से खड़े होने की आवश्यकता है, महिलाओं की अस्मिता एवं समाज के लिए कलंक बन चुकी इस हैवानियत के विरुद्ध शासन, प्रशासन, समाज, कानून सबको एक साथ सजग होने की जरुरत है ना कि सब अपनी ढपली अपना राग बजाएं | साथ ही तेजी से बढ़ रही बलात्कार की घटनाओं के खिलाफ कठोर से कठोर कानून बनाने की आवश्यकता है, आरोपी को जेल तक की सजा देने से मामला बनता नहीं दिख रहा तो उन दंड नीतियों पर भी अमल किया जाना चाहिए जिससे बलात्कारी के अंदर सामाजिक प्रायश्चित एवं ग्लानि का भाव उत्पन्न हो और वो समाज के सामने अपने किये पर प्रायश्चित करे, साथ ही रासायनिक पदार्थों के प्रयोग से बलात्कारी को नपुंसकता की स्थिति में लाने की प्रक्रिया को दंड प्रावधान में शामिल किया जाना चाहिए |
सत्यम सिंह बघेल
केवलारी, सिवनी
मध्यप्रदेश 

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